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________________ १३ किण नैं आछो खेत्र बात चलावण तणां १४ खेत्र आश्री कपड़ा बताया, राग-द्वेष त्याग छै, अमर्ष भाव आश्री, आहार- पाणी मन में करनैं । हियै धर नैं ॥ आश्री सागो । चलावण रा त्यागो ॥ काले पिण सोयो । मर्यादा अवलोयो ॥ बड़ा क १६ कपड़ो गृहस्थ विध त्यांही । बले ओषदादिक आश्री पिण, बात १५ क तिहां चौमासो करणो, सेखे तिण खेत्र विचरणो, ए पासै जाचै, वावरवा री विण ते पिण, वसतर वावरणों नांही ॥ अळगा' होवै, वस्त्र चाहीजे जरूर ते । वावरणो, महीं तो आण लेइ वरते ॥ दीधां री, बात चलावणी छै नांही । बड़ा आज्ञा कदा बड़ा जो ठको ठलको तो १८ किण नैं माहिं मोटो प्रगट अक्षर ए लिखत मांहि छै, स्वाम वचन भाख्या ज्यांही ॥ १९ उगणीसै चवदै वैसाख, कृष्ण पख वर तिथ द्वितीय ढाळ बावना लिखत री, जयजश संपति १७ १. दूर । २८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था २. बारीक । तीज भली । अधिक फळी ॥
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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