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सं० १८४५ रो लिखत
(सेवा व्यवस्था रो) ३. (पृष्ठ १४ से संबंधित)
सर्व साधां रे एक मर्यादा बांधी ते कहै छै
१ जो कोई साध कारणीक हुवै, आंखियादिक गरढो गिलाण हुवै, जद और साध उण री अगिलाणपणै वियावच करणी।
२ उणनै संलेखणा री ताकीद देणी नहीं उण नै वैराग वधै ज्यूं करणो।
३ उणरे विहार करण री रीत-निजर काची हुवै तो उणरे भरोसे निजर राखणी नही, उण नै घणी खप कर नै चलावणो।
४ रोगियो हुवै तो उणरो बोज उपारणो। उण रा घणां परिणाम चढता रहै ज्यूं करणो। पिण उण में साधपणो हुवै तो उण नै छेह देणो नही।
५ उ राजी दावै वैराग सुं संलेखणा करै तो पिण उणरी वियावच करणी। कदा एक जणो करतो उछट हुवै तो सगळा नै रीत प्रमाणे करणी। नहीं करै तो नषेध नै करावणी। जो उन करै, तो उण नै बीजा आगा सूं करावणी किण लेखे।
६ कारणीक नै-रोगियो नै रीत प्रमाणे आहार सगळा भेळा होय नै कहै ते देणो।
७ बलै किण ही रो सभाव अजोग हुवै, तिण नै कोइ टोळा माहै बेठण वाळो नही, साथै लै जावै नही, जद उण नै पेला ने घणी परतीत उपजावणी। घणी नरमाई करने हाथ जोड़नै कहिणो, थे मने निभावो यूं कहि नै साथे जाणो। आगलो चलावै ज्यूं चालणो। जको काम भळावे ते करणो। उणनै घणों रीझाय ने रहिणो। जो अतरी आसंग विनो नरमाइ करणरी न हुवै तो संलेखणा मंडणो। वेगो कारज सुधारणो। जो दोयां बोलां माहिलो एक बोल पिण आरै न हुवै तो उण सूं कलेश कर-कर नै कुण जमारो काढसी। उणनै साधु किम जाणीये-जो एकलो वैण री सरधा हुवै, इसरी सरधा धार नै टोळा माहै बेठो रहै छै-म्हारी इच्छा आवसी तो माहै रहिसु, म्हारी इच्छा आवसी जद एकळो हुसूं, इसरी सरधा सुं टोळा माहै रहै ते तो निश्चै असाध छै। साधपणो सरधै तो पहिला गुणठाणां रो धणी छै। दगाबाजी ठागा सूं माहै रहै, तिण नै माहै राखै जाण नैं, त्यां ने पिण महादोष छै। कदाच टोळा माहै दोष जाणै तो टोळा माहै रहिणो नही। एकळो होय नै संलेखना करणी। वेगो आत्मा रो सुधारो हुवै ज्यूं करणो। आ सरधा हुवै तो टोळा माहै राखणो, गाळा-गोळो कर ने रहै तो राखणो नहीं, उत्तर देणो बारै काढ देणो, पछै इ आळ दे नीकळे तो किसा काम रो।
८ टोळा माहै कदाच कर्म जोगे टोळा सूं न्यारो परै तो टोळा रा साधसाधवियां रा अंसमात्र आंगुण बोलण रा त्याग छै।
परिशिष्ट : लिखता री जोड़: ४४१