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________________ सं० १८४१ रो लिखत (साधुवां रै पारस्परिक व्यवहार रो) ३. (पृष्ठ १२ से संबंधित) साध - साध रे मरजादा री विध लिखिये छै साध साध मां मांहि भेळा रहै, तिहां किण ही साध नै दोष लागै तो धणीं नै सताब सु कहि देणो अवसर देखने। पिण दोष भेळा करणा नहीं । धणी नें कह्यां थकां प्राछित लेवे तो पिण गुरां नै कहि देणो । २. जो प्राछित न ले तो प्राछित रा धणी नैं आरै कराय नै जे जे बोल, लिखने उण नै सूंप देणो । इण बोल रो प्राछित थाने गुरु देवै तो प्राछित ले जो, जो इण रो प्राछित न हुवै तो ही कहिजो । थे गाळो-गोळो कीजो मती । 'थे न कह्यो तो म्हारा कहिण रा भाव छै । म्हे थांरा दोषा रो आगो काढ़सूं नही । संका सहित दोष भासै तो संका सहित कहिसूं, निसंकपणे दोष जाणू छू ते निसंक पणे कहिसूं । नहीं तो अजे ही पाधरा चालो, इम कहिणो, पिण दोष भेळा करणा नही । जो उ आरै न हुवै तो ग्रहस्थ पका भाई हुवै, त्यां नै जावणो उण बेठां इज कहिणो, पिण छांनै न कहिणो । ए तो चोमासो बंधीयो काळ हुवै जब छै। शेष काळ हुवै तो किण ही नै कहिणो नही, गुर हुवै जठे आवणो । पिण गुर कनै आय नैं वेदो घालणों नहीं। गुर किण नैं साचो करै नैं कि झूठो करै । गुरु तो इण बात मांहैं नहीं। एनाणां सूं कदाच एकण नै झूठो जाणे, एक नै साचो जाणे तो पिण निश्चै नही ते किणविध प्राछित देवै, आलोयां बिना पछै तो गुरु नै द्रव्य क्षेत्र काळ भाव जाण नै न्याय करणोइज छै । पिण उण नै तो एक थी दो दोष भेळा करणां नहीं। घणा दोष भेळा कर नै आवसी तो उ तो हाथां सूं झूठो परसी । पछै तो केवळी जाणे, छद्मस्थ रा ववहार मांहै तो 'दोष' भेळा करै तिण मह अवगुण नों भंडार छै। लिखतू ऋष भीखन रो छै । संवत् १८४१ चेत विद १३. • लिखतू ऋष हरनाथ ऊपर लिख्यो सही । लिख ऋष भारमल उपर लिख्यो सही । लिखतू अखेराम उपर लिख्यो ते सही । लिखतू सामजी उपर लिख्यो सही । लिखतू ऋष खेतसी उपर लिख्यो सही । लिखतू ऋष रामजी उपरलो लिख्यो सही । लिखतू संघजी उपर लिख्यो सही । लिखत ऋष नानजी । ४४० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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