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यां नै चतुरविध संघ रा निंदक जाणवा। एहवा नै वादै पूजै तके पिण आज्ञा बारै छै।
९. चरचा बोल किण नै छोडणो, मेलणो, तिलोकचंद जी चंदरभाणजी आदि बुधवान नै पूछ नै करणो, सरधा रो बोल इत्यादिक पिण तिमहीज जाणवो।
१०. बलै कोइ याद आवै ते पिण लिखणो ते पिण सर्व कबूल कर लेणो। ____ए सर्व साधां रा परिणाम जोय नै रजाबंध कर नै यां कनां सूं पिण जुदो-जुदो कहवाड नै मरजादा बांधी छै। जिण रा परिणाम मांहिला चोखा हुवै ते मतो घालज्यो, कोइ सरमासरमी रो काम छै नहीं। मूंढै और ने मन में और इम तो साधु नै करवो छै नहीं, इण लिखत में चणो काढणो नही। पछै कोइ और रो और बोलणो नहीं, अनंता सिद्धां री साख सूं पचखाण छै।
संवत १८३२ मृगसिर विद ७ लिखतू ऋष भीखन रो छै। साख १ थिरपाल री छै। लिखतु वीरभांण जी उपर लिख्यो सही। लिखतू हरनाथ उपर लिख्यो सही। लिखतू ऋष सुखराम उपर लिख्यो सही। लिखत ऋष तिलोकचंद उपर लिख्यो सही। लिखतू चंदरभाण उपर लिख्यो सही। लिखतू अखेराम उपर लिख्यो सही। लिखतू अणदा उपर लिख्यो सही।
परिशिष्ट : लिखता री जोड़ : ४३७