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१५३ वेहरी आया पछै आगली वस्तु, बलि वैहरै जइ बहु बारो।
ए पिण स्वाम भीखणजी बांध्यो, निरदोषण जीत ववहारो॥ १५४ शिर धोबा रो उदक, ढाळादिक रो-जळ गोबर कारखाना रौ पाणी।
पछै नीपनौ ते पिण बेहरै, जीत ववहार थी जाणी।। १५५ चौलपटा रो मुंहढो . सीवै, सूत्र विषै नही वायो।
जीत ववहार थकी ए जांणो, दोष नहीं तिण माह्यो ।। १५६ मुहपोतीयां तो कही सूत्र में, पिण नहीं कह्या पुड़ तासो।
जीत ववहार थी डोरो आठ पुड़, वाउकाय नी जयणां विमासो।। १५७ पाटी पटड्यां टोपसी प्रमुख, त्यां रंग रोगांन लगावै।
ते पिण जीत ववहार थी, जाणो, तिण रो कुण दोष बतावै ।। १५८ ताव प्रमुख नै मूर्छा मिटावण, राति रा राख लगावै।
ए पिण जीत ववहार थी जाणौ, बुद्धिवंत न्याय मिलावै ।। १५९ धुर पोहर तमाखू वहिरी पाड़ियारी, बलै ओषद वहिस्यो पाडियारो।
दुजैपोहरआज्ञा ले चौथे पोहर भोगवै, ए पिण जीत ववहारो।। १६० इमहीज पाडिया रा ओषधि तमाखू री, धणी री दोय कोस रै मांह्यो।
आज्ञा लेवै कोस उपरंत भोगवै, ए पिण जीत ववहार कह्यो। १६१ ओषधि रौ धणी जो और ग्रहस्थनै, कहै तूं आज्ञा दे दीजै।
तौ तिण री आज्ञा दूजै पोहर लियै मुनि, ते पिण जीत ववहार कहीजै। १६२ ओषधि रौ धणी जो कहै साधां नै, आप दूजा पोहर रे मांह्यो।
अन्य ग्रहस्थ री आज्ञा ले लीजो, ओषधि री तो आज्ञा लेइ भोगवणो नाह्यो। १६३ तड़कौ सीत टाळण दिन रात्रि, पिछेवड़ी बांधैहो।
बलै पाट बाजोटादिक आडा मेलै, जीत ववहार थी एहो ।। १६४ शेषै काळ चौमासो उतरिया बेहरी, सेज्झातर नो आहारो।
पछै जागा भौळावै ते पिण, जीत ववहार विचारो॥ १६५ सेज्झातर नौ बहरी ब्यार कियो मुनि, पाछा आया जइ गाम बारौ।
नवी आज्ञा लेइ तेह जागा भोगवै, ए पिण जीत ववहारो ।। १६६ केइ साधु घर फर्सी नै विहार कियो छै, थयो असूझतो घर जेहो।
पाछै साधु रह्या त्यां नै जे कल्पै, जीत ववहार थी एहो।। १६७ स्याही दिशां अर्थे जळ नित्यपिंड ल्यावै, बलै खंड्या धौवा नै काजो।
मुंहपति प्रमुख धौवा नै अर्थे, ए जीत ववहार समाजो॥ १६८ मेण रोगांन नै राते राखै, बलै लेइ लगायो पानो।
स्याही बणावै ते आली रहै निशि, ए जीत ववहार थी जांनो।
टाळोकरों की ढाळ : ४३१