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काळ सोल हाथ खंडियो, चौमासा में वीस हाथ खंडियो राखै, ए भिक्षु
बांध्य
अणगारो ॥ जीत ववहारो ॥
चौमासै कर पणवीसौ ।
नो, नवौ
जीत ववहार जगीसो ॥ बिछावण जाणी । पिछाणी ॥
ववहार
साधु-साधवियां राखै ते पिण जीत, १४१ खंडिया रा कळ्प रो करै, बिछावणो
पड़ला दोयो ।
तिण पेटै चौथी पिछेवड़ी चवदै हाथ नी, जीत ववहार थी जोयो । १४२ अधिक उपधि ग्यारै थिवर रै, कह्या ववहार आठमें बाणो । तेह विषै राखणौ भाख्यौ, पिण न कह्यो तास प्रमाणौ ॥ १४३ जीत ववहार थी जोगपटौ ए, साढा सात हाथ उनमानो । तेह थकी शिर वा पग बांधै, अथवा पहिरै ओढै १४४ आचारंगादिक कालिक सूत्र नी, दिवस रात्रि 'करणी, विच पहर पिण, सूत्र
जानो ।
नी ताह्यो । पर करणी नाह्यो ।
प्रथम चरम पैहर सज्झाय
१४५ जीत ववहार थी विचलै
अर्थ बिहु सोयो ।
वांचै सुणावै तो दोष नही छै, निकेवल पाठ गुणवुं न कोयो । भाख्यो, पिण तास प्रमाण 'न' कर, चौड़ो देह प्रमाण
निरणो ।
पंच
करणो ॥
१४६ साधां रै चोलपटो प्रभु जीत ववहार थी लांबो १४७ इमहिज आर्यावां रे साड़ी जीत ववहार थी लांबी आठ १४८ को उदक हाथां सूं लेणो, धुर
में, नहीं कह्यो
प्रमाणो ।
सूत्र करै, चोड़ी पिछाणो ।। अंगै ते जीत ववहार थी बेणो ।
देह प्रमाणे
सूखड़ी अन्य विगय नहीं लेणी, उपधि कारणे सूं लेणो ॥ १४९ द्वितीय आचारंग द्वितीय अध्ययनै, दूजा उद्देशा मझारो । मास खमण रहि पाछौ आवै तौ दुगणा दिन काढणा बारो || १५० जीत ववहार थी दुगणा दिन जे, विण काढ्यां आवै ताह्यो । तो एक दो रात्रि रहै साधु जी, दोष नही तिण मांह्यो । बिहु टक, कह्या पड़िलेहणा सारो । इकटक ए पड़िलेहै जीत ववहारो ॥ भिक्षु कृत
१५२ राख रेत पोथी आखो थान कपड़ा रौ, विण वावरयौ थान उपधि छै मांहि । ते पिण एक बार तौ अवश्य पड़िलेहै, विण पड़िलेह्यां न राखै कांइ ॥ झूठ बोलां रो संग न कीजै ॥
१३८ शेषै
१३९ शेषै काळ बीस हाथ अज्जा राखै ते भिक्षु नो
१४० हाथ रा पनां जे नव हाथ
१५१ आवश्यक चौथे भंड उपधि बिण वावस्या उपधि पोथ्यां,
४३० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
खंडियो, बांध्यो,