________________
साढा
४२४ कदा कहै म्हां टळियां साढा षटमास, तठा तांइ तीर्थ गण में तास । छमास पछै गण मांहि, चरण तीर्थ कहै नांहि || ४२५ तिण नै कहिणो थे अविनीत हुय गया जूआ, गण में असाधु किहां थी हुआ । थे टळियां पछै साढा छमास तांई, जो चरण तीर्थ गण मांहि ॥ ४२६ तो तठा पछै पिण चारित्र तेही, थाप बोल मुनि जेही । थे टळियां ते पिण हुआ जू जूआ ताहि, हिवै चरण तीर्थ किण मांहि || ४२७ कदा आप-आप में कहि दीयै मूढ, निज मत री राखण रूढ । पण समदृष्टी मांनै नहीं कोय, यांनै झूठा बोला जांणां सोय ॥ ४२८ कदे चरण तीर्थ उण मांहि जाय, कदा दूजां में पाय । इम उडतो फिरै थांरो तीर्थ असार, तिण में कदे नहीं भळी वार ॥ ४२९ भेळा होय बले होय जावै न्यार, यांरै ए पिण नहीं छै विचार । विविध प्रकारे त्याग दिया भांग, बले टळिया पछै हूआ सांग || ४३० आज्ञा लोप हुआ अपछंदा, बिगडायल जैन रा जिंदा । स्वाम भिक्षु नीं बांधी मर्यादा, ते पण लोपी अगाध ॥ ४३१ नित्य-नित्य त्याग करता था अनेक, ते पिण भांग्या विशेष । संकडाई में रहिणी न आयो, तिण सूं ओ ठागो बणाओ ।। ४३२ ते पिण ठागो जाणै लियो सोय, फिट-फिट करै बहु लोय । एहवा झूठ बोला रै मांय, चरण तीर्थ किम थाय ॥ ४३३ चरण तीर्थ गण पड़िया तीर्थ गुणखांन ॥
दूरो ।
शासण नंदन वन
किसो जानो ।
शासण रूडो, तिण सूं तो उपमांन, तिण में च्यार ४३४ हिवै किसो गण शासण मांनो, प्रभु पंथ ए गण चिन्तामणि कल्पवृक्ष, अवगुण बोलवै छोडी पक्ष ॥ ४३५ हिवै शासण गण किसो गिणेसो, सरण किस हिव रहेसो । शासण सकल कल्याण निकेत, तिण सूं थे थया अचेत ॥ ४३६ हिव थारै कवण मंदर सुख स्थान, थारै ए पिण नहीं छै शासण गण में थे 'भणिया' गुणिया, ' टलनै अवगुण थुनिया ॥ ४३७ थांनै भणावा रो ओही प्रताप, प्रगट दिखायो आप । आछा थोक, त्यांसूइज द्वेष ४३८ इतरा वर्स पाल्यो संजम भार, गण गुरु नै आधार । ताण, सुण उत्तम स्यूं जाणै ॥
पिछांण ।
गण में था थारै
नो फोक ॥
हिवै नीसर नै
अवगुण
१. पढ लिखकर तैयार हुए।
४०२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था