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रहै कांय ।
न्याय ॥
मान्या ए
अपराध ।
४०८ थया छमास थी अधिक विशेषो, दीक्षा विण गण में किम लेसो । इण ने दीक्षा विण मांहि न लेसै, तो बाप दादा रो घर गिणैसै ॥ ४०९ जो दीक्षा विण लेसो इणवार, तो जांणसां भरत में थयो अंधार । म्हारो गण में आवा रो मन होय, तो दीक्षा ले आसां जोय ॥ ४१० म्हे तो कपूत सपूत उणांरा, पिण नहीं अवर किणां रा । उतावळो बोली नै बात आखी, इम गृही गणि पै दाखी ॥ ४११ इण लेखै नव मास गण में रही आयो, दीक्षा विण किम लै मांह्यो । यां नीकळ्यां पछै छठो अवनीत, गण में रह्यो नव मास सुरीत ॥ ४१२ तिण नै दीक्षा विण यां मांहि लीधो, बले आहार पांणी भेळो कीधो । जो साधुपणो जाणे गण मांहि, तो पोता में चारित्र नांही ॥ ४१३ जो गण में कहै छठो गुणठांणो, तो न्यारा रह्यां दोष जाणो । गण में असाधु सरधै जो ताहि, तो छठा अविनीत नै लेणो नांहि ॥ ४१४ साधु पणो सरधै गण मांय, तो पोतै जुदा दोनूं प्रकारे बंध में आय, साप ग्रही छछंदरी ४१५ जो साढा छमास तणीं मर्याद, न कितो काळ रहै असाधां मांहि, तथा आज्ञा बारै रह्यां तांहि ॥ ४१६ तो साधुपणों तिण नै देणो सुवैद, किता काळ पछै तप छेद । रहै इतरो काळ असाधां मांय, तठा तांइ छेद तप आय ॥ ४१७ तेहथी अधिक चारित्र आपो, थारै किसी छै थापो । पहिछांण, चरण छेद तप जाण ॥ म्हारै, कहो कवण थाप है थारे । आवै, तब पग-पग झूठा थावै ॥ सोय, ज्यारै इण विधि दोघट होय । नहीं छै संघ, त्यांरी बोली में नहीं बंध | ४२० जिलो करी पांचूं नीकळ्या साथ, पछै जू जूआ हूआ साख्यात । फूट-फजीती इण विधि होय, फळ प्रत्यक्ष देखो सोय ॥ ४२१ परभव नरक निगोद निवास, इण भव इम जाणी शासण रै बार, कोई म होज्यो लिगार || ४२२ औ जू जूआ हूआ ते प्रश्न पूछीजै, प्रभु तीर्थ कि मांहि कहीजै । थां यांमै कै म्हांमै उदार, इण रो उत्तर देवो विचार || ४२३ प्रवचन सूत्र पिण तीर्थ सार, को रैसी इकवीस हजार । तिण री तो पूछा करी नहीं कोय, पूछा चरण तीर्थ री जोय ॥
इम हिज जुदा रह्यां ११८ साढा छमास नीं थाप है
इम कह्यां सुद्ध जाब नहीं ४१९ इम शासन बारै नीकळै बात-बात महि
आपद पास।
लघु रास : ४०१