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३७७ तस्सन्नी-गणपति जाणे ते ज्ञान, तिमहि जाणै सुजान।
तप्पुरक्कारे-गणप्रति नै जाण, करै सहु कार्य में अगवाण॥ ३७८ इहां कह्यो जाण पणो गुरु नो होय, तिम पोते जाणवू सोय।
कार्य सर्व मांहि अगवाण, करै आचार्य नै सुजाण॥ ३७९ ए वचन देखतां जिनेश्वर आप, करी आचार्य नी थाप ।
बुद्धिवंत विनयवंत मिलि जेह, गुरु थापै ते अंगीकरेह ।। ३८० गण मांहि सेव्या सतरा वर्स बोल, थारो न गयो चरण अमोळ।
ज्यं म्हे पिण हिवडां निर्दोषजानंता, म्हांमै दोष क्यूं ताणंता॥ ३८१ जब कहै म्हे दोष जाणा तिण लेखै, थांमै दोष सरधां सुविशेखै।.
थे निर्दोष जाणी सोय, पिण म्हारै लेखै दोष होय।। ३८२ तिण नै कहिणो थे सेव्यो इता वर्स तांइ, थारै लेखै दोष थां माही।
थांने इतरा वर्सा रो दोष न लागै, निर्दोष जाण सेव्या सागै॥ ३८३ म्हे पिण निर्दोष जांण ए बोल, तो म्हारो चरण अमोल।
थारो गयो काळ म्हारो वर्त्तमान, ए दोनूं सरीखा पिछान।। ३८४ गया काल रो साधुपणो थारो, ज्यूं वर्तमान रो म्हारो।
ज्यूं थे पिण महोच्छवादिक करंता, तिण में टाळोकर दोष कहता।। ३८५ पिण थे दोष जाण न सेव्यो कोय, तिण सूं दोष न सरधो सोय ॥
ज्यूं थे पिण हिवडां दोष कहे, पिण म्हांनै दोष न भ्यासेह।। ३८६ थारै गया काळ रा टालोकर तेह, ज्यूं हिवड़ा टाळोकर थेह।
ते पिण कहिता छोड्या म्हे ढीळां नै, ज्यूं थे पिण कहो छोड्या थांनै॥ ३८७ ते पिण कहिता आगी नो चिमतकार, ज्यूं थे पिण कहो इणवार।
ते पिण कहिता साधां में दोष, ज्यूं थे पिण कहो छो फोक ।। ३८८ ते पिण गण नी निंदा अति करता, थे पिण इम पिंड भरता।
क्षेत्रे रहिता तेपिण नाणंता संक, थांमै पिण योहिज वंक॥ ३८९ त्यां पिण लिखत सूंस दीया भांग, थारो पिण ओहिज सांग।
उणां री थांरी सरीखी बात, ते प्रगट दीसै विख्यात॥ ३९० ते बिखर गया मूआ भंडी रीत, ज्यूं थे पिण होसो फजीत।
एक भाई साधां नै कह्यो एम, म्हे समझाया धर प्रेम। ३९१ दांत सोभै छै मूंहढा रै मांय, पिण बारै पड्या न सोभाय।
जद कहै ओर भारी दंड दीजै, पिण नवी दीक्षा किम लीजै॥ ३९२ किणनै कहै अवरां नै तो जै धेरै, तिण चेला नै क्यूं न अवेरै।
एक श्रावक कह्यो साधां नै आय, तीजा अविनीत री वाय।।
लघु रास : ३९९