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________________ ३६१ थे गण में थकां निर्दोष जानंता, जद टाळोकर दोष कहता।. पिण थे निर्दोष जाणी सेव्या जब ही, तिणसूं तिको संजम सरधो अबही। ३६२ ज्यूं हिवडा संत दोष न जाणै, थां सरीखा टाळोकर ताणै । पिण संत निर्दोष जाणी नै सेवै, तिणसूं त्यां में दोष कुण कहेवै।। ३६३ तेह टाळोकर दोष कह्यां थी, थांरो संजम न गयो सेव्यां थी। ज्यूं हिवडां टाळोकर दोष बतावै, तो म्हारो संजम किम जावै ।। ३६४ गया काळ रा टाळोकर जेह, वर्तमान रा छंह। दोनूं टाळोकर सरध्यां में तत्थ, थारो सरधो गया काळ रो चारित्त॥ ३६५ तिमहिज हिवडां वर्तमान काळ, म्हे सेवां निर्दोषण न्हाल। थे दोनूं टाळोकर दोष बतायो, तो म्हारो चारित्र किम जायो॥ ३६६ बोल थाप गण में गयै काळ, त्यांरो चारित्र सरधो विशाल । हिवडयं ते ही बोल थाप पिण तेह, तेहिज संत गुणगेह ।। ३६७ बोल थाप हिवडां पिण थाय, हिवडा नहीं सरध्यां पहिलाइ। चरण पहिला तिको हिवडां पिण थाय, हिवडा नहीं सरध्यां पहिलाइ नाय॥ ३६८ निर्जरा हेतै छोड़े जे बोल, पिण जाणै निर्दोष अमोळ। दोष न जाण्या बोल छै तेहवो, छोड्यो पिण नहीं छोङ्या या जेहवो॥ ३६९ स्वाम भिक्खु पिण इम कही बात, लिखत -पैंताळीसै अवदात । सरधा आचार कल्प रो बोल, तथा सूत्र नो बोल अमोल ।। ३७० गुरु तथा भणणहार कहै जाण, करवो तिमज साधु नै प्रमाण। नहीं वैसे तो केवळियां नै भळायो, पैताळीसै भिक्षु फुरमायो। ३७१ ए वचन धारयां सम्यक्त्व नै नहीं जोखो, ज्यूं पांमै अविचल मोक्षो। ए भिक्षु वच अंगीकार करीजै, मन नी ले'र मेटीजै ।। ३७२ पंच ववहार भगवती मझार, बले ठाणांग नै ववहार। जीत ववहार पंचमो दाख्यो, तिण सूं वीर आराधक भाख्यो॥ ३७३ आख्यो आचारंग मांहि जिनेश, पंचमध्येन रै पंचमुदेश। - सम्यक सुद्ध जाणी मुनि सैवै, जिन असम पिण सम कहिवै ।। ३७४ तेरै अंतर कह्या भगवती माय, संका राख्यां मिथ्यात वेदाय । श्री जिन भाखै ते सत्य निसंक, इम धारी तजै मन बंक॥ ३७५ तास आज्ञा नो आराधक कहीजै, ए वचन अंगीकृत कीजै। तथा बले आचारंग कह्यो जिनेस, पंचमध्येन रै चउथै उद्देश ।। ३७६ तद्दिट्ठीए-आचार्य नी दृष्टि देखी, प्रवत् सुविनीत विशेखी। तम्मुत्तिए-आचार्य नै अभिप्राय, तन्मय पणै रहै ताय ।। ३९८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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