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________________ ३१६ साढा छ मासे नाया गण मांय, नवी दीक्षा आवै इण न्याय । बोल्यो-आपनै भ्यासै तिको करो सोय, न करूं आप सूं चरचा कोय॥ ३१७ बले कहै हूंतो छू कीड़ी समान, आप हाथी समान सुजान। जय कहै-सम्यक्त्व राखजो सोइ, बोल्यो सम्यक्त्व चारित्र दोइ ।। ३१८ जय कहै-चरण सरधै आप मांहि, तो सम्यक्त्व पिण रहै नांहि। जद कहै-कदै मार्ग रहै नांहि, नीकळ्यां चरण किम न कहाइ ।। ३१९ जय कहै-नीकळ्यां में चरण कहीजै, तो पाछलां नै स्यूं सरधीजै। इम कह्यां पाछो जाब न आयो, पछै आयो जिण दिशि जायो।। ३२० पहलै दिन सिरदारांजी पूछयो ताहि, म्हांनै साधु सरधो कै नांहि। दिख्या विण न ल्यां म्हारै ए मर्याद, जद कहै हूं तो सरयूं साध ।। ३२१ किण ही नै कही दीसै छै बात, तिण आय पूछी साख्यात। यां वंदणा माहै नाम घाल्यो हुलासी, ते वंदणा यांरी यूं ही जासी॥ ३२२ जय गणि क है-यूंही किम जाय, तिण री हुई निर्जरा ताय । अधिक अविनीत सिरदाराजी पाय, बोल्यो इह विध वाय।। ३२३ इतरा दिवस रह्या उण ग्राम, ते मांहि आवण रै काम । गणपति नांहि किया अंगीकार, जद कर गया तीनूं विहार ।। ३२४ हिवै बार' अधिक अविनीत, बेहुं नै मेल गयो अनीत । त्यां तीनां कनै जावा भणी प्रसीधो, अनेक कोसां रो पैंडो कीधो।। ३२५ त्यां तो तिण नै आदरिया नांय, जद छठा नै लेग्यो फटाय। धुर अविनीत गयो तिहां थी आघो, घणा लोकां जांण लियो ठागो। ३२६ हिवै तीजो पांचमो बलि गणि पै आय, मांहि आवा करी नरमाय। महा विद बारस तिथि वदीत, गुरु नै मिलियो तीजो अविनीत ।। ३२७ लोकां सुणतां-कहै ए गुरु म्हारा, म्हे चेलां छा यांरा। __ जय कहै-गुरु तो कहै छै साख्यात, तो क्यूं न करै ऊंचो हाथ ।। ३२८ बोल्यो आहार पांणी रो संभोग न कांइ, तिण सूं वंदणा करां म्हे नांहि। जो करै आहार नो संभोग उदार, तो म्हे वंदणा करां इह वार ।। ३२९ जय कहै-पहिला वंदणा कीधी जोग, जद पिण न हुँतो संभोग। वंदणा तिहां कीधी धर प्रेम, तो इहां करै नहीं केम।। ३३० कोइ कहै-म्हारी माता बांझ तेम, गुरु कही न वादै ते एम। लोक कहै ए तो ओळंभो साचो, खराखरी ए जाचो।। ३. छोगजी (लघु) १. अलग। २. कपूरजी। लघु रास : ३९५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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