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३३१ पंचम' अविनीत गुरु पै आय, गण में आवा रा किया उपाय ।
गुरु कहै दिख्या दीया विण सोय, म्हे तो माहै न ल्यां कोय ।। ३३२ कहै आप दिख्या विण त्यागज लीधा, पिण सरूपचंदजी न कीधा।
जय क है-सर्व साधां रै नेम, दिख्या विण लै के म ।। ३३३ महा सुदि नवमी तांइ सुविशेष, इम बातां हुइ अनेक ।
इण विध गण में आवण आघा, बले दोष बतावण लागा ।। ३३४ साढा इग्यारै मास लग ताहि, चारित्र सरध्यो गण मांहि ।
तठा पछै तो जाणे सर्व ज्ञानी, पिण ए तो प्रत्यक्ष पिछांनी॥ ३३५ अधिक अविनीत रै संभोग यां सूं, तिण सूं श्रद्धा जूदी की त्यां सूं।
गणपति हाजरी लिखत सुणाया, ज्यांरा हाथ रा अक्षर दिखाया।। ३३६ घणां गांमा में वंदणा रा त्याग कराया, ते सुण नै द्वेष भराया।
लोक पूछयां बोलै आळ पंपाळ, झूठा देवै बहु विधि आल॥ ३३७ साधां में दोष कहे अविवेक, त्यारै कर्म तणी काळी रेख।
साधां में दोष बतावै मूढ, ते कर रह्या कूडी रूढ॥ ३३८ साधां में अणहंता दोष बतावै. ते तो गाळां रा गोळा चलावै।
किण नै कहै अक्षर कीधा, ते डरता थका लिख दीधा।। ३३९ कोरडां नी मार मतो घाळे तेम, म्हे पिण अक्षर किया छै एम।
किण नै कहै भिक्षु स्वाम निकळीया, तिम म्हे पिण यांसूं टळिया।। ३४० किण नै कहै ए ढीळा चाळे, दोष सेवतां नै कुण पालै।
किण नै कहै सेलक नै ढीळो जाणी नै, चेला गया छोडी नै॥ ३४१ किण ही पूछ्यो छांनै क्यूं नीसरीया, पूछी नै नहीं टळिया।
जाब करवा री आसंग न कांय, तिण सूं छांनै नीसरिया ताय।। ३४२ किण नै कहै चेला री प्रतीत न गुरु नै, ज्यूं गुरु री प्रतीत न शिख नै।
किण नै कहै मोटा भांडा छोत न लागै, इम दृष्टान्त दै लोकां आगै॥ ३४३ किण नै कहै प. किण वेळा कोपरियो', कदे राय पड़े कदे सडीयो।
- इम पड़तां-पड़तां पड़ जाय बघारा, इम जाण नै हुय गया न्यारा॥ ३४४ तिण नै बुद्धिवंत वै ते पाछो कहै एम, दोष जाण्या पछै रह्या केम।
एक दोष सूं बीजो भेळो करै ताही, लिखत पचासै कह्यो अन्याई।। ३४५ किणनै कहै दोष जाणै रह्या क्यांनै, दोष जाण्यां पछै छोड्या यांनै।
इण विधि झूठ बोलै जाण-जाण, तिण रो नहीं कठैई प्रमाण।।
१. छोगजी (लघु)
३. तरेड़। २. पत्थर का टुकड़ा। ३९६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था