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३०१ तुम्हे आधारभूत छो अम्ह नै, कह्यो करी सजल लोचन नै।
कह्या नरम रूप वच सरागकारी, पिण म्हे तो न मान्या लिगारी।। ३०२ गण मांहि आवा तणी हूंस राखै, बले अवगुण इण विध आखै।
त्यांनै विवेक रा विकळ कहीजै, त्यांरा कार्य किण विध सीझै।। ३०३ गुरु रा दर्शण करवा श्रावक एक, आय कह्या सुगुरु नै विशेष।
हूं आवतो दर्शन करिवा काम, तीजै अविनीत मुझ कह्यो ताम ।। ३०४ बोल चाल री तो म्हारै न कांय, म्हे पिण पगां पडां छां जाय।
गण माहै दोष जाणै ए ताय, तो इम कहि किम मांहि आय ।। ३०५ जद दिख्या दियां विण लेवा रा त्याग, जय गणि कीधा सुद्ध माग।
तीनूंइ गणपति ना समाचारो, सांभळिया तिण वारो।। ३०६ दिख्या दियां विण पांचां नै जांण, मांहि लेवा रा पचखांण ।
छठा नै काळ थोड़ो थयो जास, तिण सूं मिलियां पड़े ठीक तास॥ ३०७ ए त्याग सुणी थया अधिक उदास, त्यांरा मन री न पूगी आस।
तिण सैहर थकीं इक बाई आई, तिण गणपति नै बात सुणाई ।। ३०८ कह्यो तीजा अविनीत तणो अवदात, मोनै मिलियां कही तिण बात।
आप त्याग किया ते सांभळ कान, मोनै इण विध बोल्या बान ।। ३०९ देखो अमकडिया री माजी स्वामीजी, दीक्षा दियां विण आखडी' लीजी।
___ म्हे तो गण में आवा री धारी, देखो स्वामीजी काय विचारी।। ३१० इतला दिन रह्या इण गाम, गण में आवा रै काम।
देखो अमकडिया री माजी प्रसीधो, म्हे तो बालपणे चरण लीधो।। ३११ वर्ष इता चरण पाळ्यो ताह्यो, म्हांसूं नवो लियो किम जायो।
एक घडी तांइ ऊभा विख्यात, बाई कह्यो म्हांसू करी बात।। ३१२ पचपदरै पोस विद मांय, तीनूंइ तिहां आया चलाय ।
जय गणपति रै पास जिवार, आयो तीजो अविनीत तिवार ।। ३१३ सन्मुख वंदना कीधी जोड़ी हाथ, घणां देखतां प्रगट विख्यात।
. म्हे तो वंदना रो संभोग कीधो, घणा दिवस तांइ नाम लीधो।। ३१४ सुणियो दिख्या विण नहीं लै मांहि, तठा पछै वंदना छोडी ताहि ।
म्हांनै नवी दिख्या आवै किण न्याय, हिवै जय गणपति कहै वाय॥ ३१५ गृहस्थ पिण वंदना में घाले छै नाम, कारण वनणा रो नहीं ताम।
चउमासा मांहि मुनि था त्यांसू, संभोग न कीधो ज्यांतूं।
१.प्रतिज्ञा।
३९४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था