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२८६ आपरा अवगुण बोल्या अनेक, पूरा कहिणी न आवै विशेष।
पोल घणी जाणै निज मांय, तिण सूं हाजरी नित्य लिखाय।। २८७ साधा नै ऊभा राखै मुख आगै, इम लोकां में आछी न लागै।
साध-साधवी घणां रहै भेळा, निज कीर्त्ति काज स मेळा।। २८८ म्हांनै न्यारा विचरावै नांहि, बहु दोष अछै गण मांहि ।
तिण कारण गण सूं निकळिया, विहार में विण पूछ्यां टळीया।। २८९ जद म्हे कह्यो दोष जाणो इण मांहि, तो चरचा करवी स्वामीजी सूं त्यांहि।
पिण छांना मांना भागवो नहीं भोर, छानै भागतां थेईज चोर।। २९० जिनमत में भागवो नहीं छांनै, चोड़े पूछवा. बोल गुरां नै।
जद कहै बोल म्हे पूछां जिवारै, म्हांनै बोलवा न दै तिवारै।। २९१ गळो ग्रहै हाजरी रै मांहै, म्हांनै ऊभा करदै ताहै।
करै फजीत लोकां रै मांहि, तिण सूं डरता पूछी सकां नाहि। २९२ पूर्व भव में स्वामीजी आप, कोइ तापस था महा ताप।
साधां ऊपर तो दया नहीं आले, ऊभा कर देवै तड़कै उन्हाळै। २९६ अज्जा नै तो खमा-खमा कहै छै, त्यांरा कैहणा में आप रहै छ।
बले कह्यो स्वामीजी तो परमांधामी छै, सांधा ऊपर दया नहीं छै॥ २९४ तीजै अवनीत कह्यो बले एम, ऋषिराय वरतारै खेम।
जुदा-जुदा लेइ नै सिंघाड, विचरता हुंता अणगार।। २९५ पचपदरा जिसा क्षेत्रां में तास, करता दोय ठाणां चउमास ।
तिहां बैठा सीखावां म्हे बायां भाया नै, ए बात म्हारै मन मानै। २९६ बले मन मान्य विचरता खेत्त, बाई भाई सेवा करता तेथ।
आगै अम्हे एहवी असां करता, अब तो रहां छां डरता ।। २९७ साधां रा तो भांग न्हाख्या सिंघाडा, किम विचरै हूंस कर न्यारा।
इत्यादिक अवगुण बोळ्या अनेक, जद म्हे कह्यो आण विवेक।। २९८ दशा रै साल हूं आयो मेवाड़, जद थे अवगुण बोळ्या अपार। ___म्हारै पिण कर्म बंधाव्या अपारी, ते हूं याद करूं वारूंवारी॥ २९९ तें दिन थी तुम्हनै हूं सोय, साधू न सरवू कोय।
स्वामीजी नै सुद्ध साधू जाणूं, थांरी प्रतीत न आणू।। ३०० पछै कमर बांध हूं आवण लागो, मोनै लेग्यो दुकान में आघो।
अधिक अविनीत कह्यो मुख आगै, तुम्हे जावो सो आछी न लागै॥
१. चतुर्भुज जी, कपूर जी, छोगजी,(लघु)।
लघु रास : ३९३