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३१ म्हे विचारयो तिवारो, यारो सुधर जाय जमारो।
कपट री खबर नहीं मोय, व्यवहार देख लियो सोय। ३२ हाथ जोड़ी नै ऊभा ह्येवो, पूर्व सांहमो मूंहढो कर देवो।
मिच्छामि दुक्कडं थारै सोय, स्वामीजी प्राछित देसी जोय।। ३३ म्हे कहां छा मान मोड़, वंदना गुरां नै कर जोड।
वंदणा में घालसां नाम, म्हारा जांण जो दृढ परिणाम ।। ३४ ए तो बोल्या सगळा सीधा, घणा लोकां नै सायद कीधा।
म्हे विहार कीधो जिवारो, पहुंचावण आया लारो॥ ३५ गुरां नै आय कही सर्व बात, जब आज्ञा दीधी साख्यात।
नागोर री पटी में रहीजो, चौमासो ऊतरयां दोय दर्शन कीजो।। ३६ यांरो निभाव करण सोइ, ए आज्ञा दीधी जोइ।
त्यांनै कह्यो बे गृहस्थ जाय, कर्म उदा सूं मान्यो नांय॥ ३७ बले निकळीया गणवारो, ओ तो हार दियो जमारो।
ओरां रो नाम लेवण लागा, हुआ व्रत विहूणा नागा ।। ३८ कोइ आपरो टापरो देवै लगाय, ओरां री चिंता किम थाय ।
यां लगायो आतमां नै काळो, यारै झूठ रौ नहीं छै टाळो ।। ३९ डाकण नै नीला कांटा में बाळे जिवारो, जब वा करै सोर अपारो।
मोटा कुळ री रो नाम बतावै, कुलवंत सैणा' रै दाय न आवै ।। ४० ज्यूं भृष्ट भागळ हुआ छै तेह, ते अवरां रो नाम लेह।
समझू तो देसी जाब, पाड़सी घणा लोकां में आब।। ४१ इम मांहो मांहि हुइ बात, संक्षेप कही विख्यात। ऋषि हंस उगणीसै इकवीसै सारो, जोड्यो भागल नो अधिकारी।।
ढाळ मूळ १६३ टाळोकर पांचूं टळ्या गण वार, उदै आया असुभ अपार।
मन चाहा देश तणी दीसै हाम, पिण पड़सी विपत्ति अपूठो ताम।। १६४ रसतै ठाकुर नै मिल्यो एक डूंब, गुण दूहो कह्यो पग लूंब ।
जोड़ो पगरखी रो ठाकुर दियो, आगै जाय डूंब चिंतवियो॥ १६५ विण मांग्यो ए दीधो जोड़ो, मांग्यो है तो दे घालतो घोडो।
लारै जाय कहै पुन्यवंत छो आप, मोनै घोड़ो देवो मां बाप॥ १६६ ठाकुर कोरडा री दीधी बे च्यार, जब चाल्यो मूंह बिगाड़।
तिम जाण्यो दीसै पहिला क्षेत्र भळाया, अबकै देसी मन चाह्या ।।
१. मन्त्रवादी।
२. लय : पुन्यवन्तो जीव पाछल भव।
३८४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था