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________________ १६७ आपद पडसी अपूठी आय, तिका बात सुणो चित्त ल्याय। नवी दीक्षा आवै जिसा वाया यां बीज, तिका आगल बात कहीज। १६८ त्यां थी पांचूं जणा चाल्या आघा, हुआ व्रत विहूणा नागा। दोय सौ इकवीस ठाणा सूं तोडी, निकळिया गण छोडी।। १६९ तीर्थ च्यार थकी पिण तूटी, दुख वेदनी लीधी आकूटी। विपत रूप कर लीधी कुहाडी, चरण रूप संपदा उखाड़ी। १७० चरण रूप लक्ष्मी नै भगाइ, लीधी आपद नैज बुलाइ। चरण चिन्तामणि निज कर आयो, एतो जैहलै साटै गमायो।। १७१ गणपति ना अति अवगुण गावै, मन मानै ज्यूं गोळा चलावै । गुरु उपगार कियो थो भारी, यां तो घाल्यो सर्व विसारी।। १७२ कृतघ्न कीधो उपगार न जाणै, यांनै मोह कर्म अति ताणै। गुरु उपगार कियो अधिकाय, त्यांरी यारै न दीसै तमाय ।। १७३ आचार्य उवज्झाया ना वैरी, मैं तो अंतरंग माहै गैरी। लोकां नै भर्म मांहि ए पाड़े, ए तो आसता चोडै उतारै।। १७४ गणपति पै भणै अवगुण गावै, महा मोहणी कर्म बंधावै। कह्यो समवायंग दशाश्रुतखंध, ते पिण जाण्यो नहीं मोह अंध।। १७५ समक्त्व चारित्र ना दातार, त्यांनै किम घालीजै विसार ३ । एक वचन सीखै समण महाण पास, त्यांनै वांदै पूंजै सुविमास ।। १७६ पंचमै ठांणै आचार्य सोध, त्यांरां अवगुण बोल्यां दुरबोध। ___ अपछंदा पड़िया गण सूं जूआ, च्यार तीर्थ में फिट-फिट हुआ। १७७ पश्चिमी थली में आया चलाय, तिहां अवगुण बोल्या अथाय। - हर कोइ मनुष्य यां पासै आवै, जब गुरु मांहि दोष बतावै।। १७८ निंद्या तिकोइज योरै ज्ञान, योरै निंद्या तिकोइज ध्यान। श्रावक हुंता ते चतुर सुजांण, यांनै वंदणा छोड़ी खोटा जाण। १७९ किण ही पूछ्यो गण में सरधो कांई, बोल्यो चरण सरधां गण मांही। छठो गुणठाणो तो कहिता जावै, बले अवगुण पिण दरसावै॥ १८० बारोटिया जिम देश उजाडै, जांणै म्हांनै ठिकाणै बैसाडै। तिण विधि यारै दीसै मन मांय, मन मान्यो दै देश भलाय॥ १८१ अथवा सिंघाडो कर देवै म्हारो, मन एहवो दीसै छै यारो। गुलहजारी को लेवै नाम, त्यांनै देश भलायो ताम॥ १. जाणबूझ कर। ३. विस्मृत। २. निष्फल। ४. छापामार (घरभेदी) लघु रास : ३८५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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