________________
१५ किण रा बाप ऊपर बीजळी पड़ी हुवै सोय, बेटो पिण डर राखै जोय।
ज्यूं म्हे हुआ गण बारो, म्हे म्हां ऊपर धारां सारो॥ १६ स्वामीजी परचो उडावै, म्हांनै दुख घणेरो थावै।
ऋषिराय तणों वरतारो, म्हेतो याद करां बारंवारो॥ १७ ऋषि हंस कहै परचो खोटो, तिण सूं पड़ जाय जाबक तोटो।
स्वामीजी कहै सो न्याय, थे दुख वेदो थारै रोग घट मांय ।। १८ दूजो तीजो बोल्यो तिण वारो, म्हारै बोल रो करो निरधारो।
म्हारै हीयै देवो वैसायो, मांन लेसां थारी वायो। १९ पिण म्हारै रहिवा रो ठिकांणो नाहि, दुख आहार पाणी रै तांहि।
घणा भेळो रह्यो नहीं जाय, तिण सूं गण बारै म्हे थाय॥ २० म्हे यांनै निषेद्या भांत-भांत, ते तो जाण रह्या जगनाथ।
अधिक अविनीत बोल्यो नाहि, निषेद्यो तो पिण गमै नाहि॥ २१ बोलां रा दीया जाब, ते तो मान लिया सताब।
मन री तो खबर नहीं कोय, व्यवहार देख लियो सोय॥ २२ सर्प नै दूधज पाय, तो तुरत जहर हुय जाय।
थांनै स्वामीजी दीधी साता, थे तो होय गया ताता। २३ अधिक अविनीत नै पूछ्यो तिवारो, थारा परिणाम कांइ धारो।
जब बोल्यो पांचमां सूं प्यारो, हूंतो नहीं रहूं यांसूं न्यारो।। लिखत कर दियो सोय, हाथ काट दिया छै जोय।
एक मास पछै च्यारूं आहारो, भोगवणा नहीं लिगारो।। २५ हंस कहै त्याग करता अनेक थे तो मानो नहीं छो एक ।
खोटा त्याग थे पाळो, साचा इतरा क्यूंनी संभाळो॥ २६ इम कह्यां रो जाब न आयो, न झाळ रह्यो मन मांह्यो।
विविध वैराग विविध सुबातो, कही घणी विख्यातो॥ २७ अधिक अविनीत कहै बातां कही सांची, पिण म्हारी मति होय गइ काची।
माठी गति रो आउखो बंध्यो म्हारो, किण रो टाळ्यो न टळे लिगारो॥ म्हे कह्यो थारै साता री चावना पूरी, तो गुरु री आज्ञा पाळो रूडी।
थे शासण सन्मुख थाय, कदा नागोर री पटी देवै भलाय।। २९ इम सुण नै सगळा जिवारो, नेवरा खावै वारंवारो।
इण विधि निभजासां सोय, जो गुरु नी आज्ञा होय ।। ३० म्है छ दिन रह्या गण वारो, तिण रो प्राछित देसी सारो।
हरष धरी आदरसां, गुरु नै पाए पड़सां।
लघु रास : ३८३