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टोळा में प्रतीत
अणाई | निसंक, यांमेईज जाणीयो बंक | तो झूठी कीधी बकवाय । दोषण कहिता ताहि ॥
१०४ प्राछित लेइ आया गण मांही, श्रावकां आगे कहया ते हुआ १०५ यांतो दोष बताया मांय, आ टोळा रा साधु-साधवी मांहि, १०६ इण बात सूं तो भंडा घणा दीठा, पड़िया च्यार तीर्थ में फीटा। औ तो प्राछित ले गण मांहै आया, सगळा साधां नै सुध ठहराया ॥ १०७ गणपति रा गुण नीं बहु जोड़, औ तो करवा लागा धर कोड | ऊभा होय परषद में आत्म निंदै, गया काळ रो पाप निकंदै । १०८ कहै कर्म जोगै म्हे बारै नीकळीया, पिण भाग्य जोगे पाछा मिलीया । बलि निज अवगुण जोडां करि ताहि, औ तो कहै परखद रै मांहि ॥ १०९ बलि जोड में गणि गुण गावै अथागै, आप स्वाम सीमंधर सागै । तिण हिज टांगै एक बलि टळियो, विहार में विण पूछयां नीकळियो । ११० तीजा अवनीत रो ए बहिनोइ, तिण नै कर्मा दीयो विगोइ । आसरै दोय मास रहि सीधो, इण पिण मांहि आवी दंडलीधो ॥ १११ ओ पिण ऊभो रहि परषद मांहि, निज आतम निंदै ताहि । गण सूं नीकल नै पाछा आया मांय, केइ वर्ष कर्म उदै आय || इति तृतीय अविनीत वर्णन
११२ अविनय रोग वध्यो अधिकाय, बले लोळपी अधिक अथाय । दूजा तीजा अविनीत रै सोग, इणरै परचा रो पिण अति रोग || ११३ परचो निषेध्यां घणो दुख पावै, मन में अति सीदावै । टाळोकर नै निषैधै सोय, तो वेदल विलखा होय ।। ११४ संकडाइ में रहिणी न आय, यांरै पुद्गल सुख नीं चाय । आगवाण पिण नहीं विचरावै, ते पिण ११५ बलि स्वार्थ नहीं पूगै जिणां रा, जद अवगुण
दुख बहु पावै ॥
बोलै
गुरां रा ।
अविनय रोग वध्यो अधिकाय, संग अविनीतां रो सुहाय ॥ इति चतुर्थ अविनीत वर्णन
११६ एक' बले अविनीत थो ताहि, तिण री प्रकृति कठोर अथाय । ज्यां साथै मेलै त्यांनै दुखदाइ, ते पिण सूंपै गुरु नै आई || इति पंचम अविनीत वर्णन
११७ अधिक अविनीत पहिलो कयौ ताहि, गण में अधिकाई री मन मांहि । तिण री आसा बांछा पूगी नहीं काय, जद मिलियो च्यारां सूं जाय ॥
१. पांचवां लघु छोगजी ।
३७८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था