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८९ आसरै तीन मास न्यारा रया ताय, तिण में कीधी घणी बकवाय।
श्रावक आरै करता दीसै नहि, जब प्राछित ओढ आया मांहि ।। ९० आलोवण करणी थापी ताय, प्राछित देशी ते लैणो ठहराय।
तिण रा साखी गृहस्थ ठहराय, तथा पछे लीया गण मांय॥ ९१ टोळा रा साध-साधवी मांहि, किण रै प्राछित ठहरायो नाहि।
किण ही प्राछित मूळ न लीधो, मिच्छामि दुक्कड़ नहीं दीधो॥ ९२ किण ही में नहीं काढ्यो बंक, सहुनै कर दीधा निसंक।
प्राछित विण दीयां आया मांहि, सगळा नै सुध जाणी ताहि । ९३ यांरी तरफ सू चोखा जाण, गुरु रै पगां पड़ीया आण॥
जो जै दोष जाणै किण मांहि, तो जै आघो काढै जिसा नाहि। ९४ दोषण ज्यां में कया था मुख सूं, त्यांरा वांदीया पग मस्तक सूं।
त्यांनै तो प्राछित मूळ न दीधो, उळटो आप दंड ओढ़ लीधो।। ९५ ज्यांरा महाव्रत कया था भागा, त्यांरैइज पगां आय लागा।
ज्यांने कया था लोकां में खोटा, त्यांनैज लेखव लीया मोटा। ९६ ज्यांमै काढ्या था दोष अनेक, ते तो छोड़ दीधी सर्व टेक।
उळटो आपरै दंड ठहराय, इण विधि आया गण मांय॥ ९७ ज्यांनै ढीला कहिता ताण-ताण, त्यांराइज पग वांद्या आण।
ज्यांसूं लोका नैं देता भिड़काय, त्यांराइज पग वांदीया आय॥ ९८ ज्यांनै अणाचारी मुख सुं आख्यात, तिका पाछी न पूछी बात।
ज्यां में दोषण कहिता . आप, ते तो जाबक दीया उथाप॥ ९९ उळटो आपरै दंड कराय, गण मांहि बैठा छै आय।
ज्यां में कहिता कपट नै झूठ, हेळा निंद्या करता पर पूठ॥ १०० उत्तम पुरुष त्यांनै ठहराय, प्राछित ओढ आया त्यां माय।
ज्यांनै खोटा सरधावण ताय, कीधा था अनेक उपाय। १०१ त्यानैं तिरण तारण ठहराय, प्राछित ओढ आया त्यां मांय।
यांने जाणता था केइ साचा, ते तो 'प्राछित ले' हुआ काचा।। १०२ बले जो तांणै यारी दूजी वार, तो मै पूरा मूढ गिंवार।
न्यारा थका हूंता घणा गैरी, गण रा हुआ था पूरा वैरी।। १०३ सर्व साधा नैं खोटा सरधाया, त्यांमेइज दंड ओढ आया। __ यां तो च्यार तीर्थ रै मांय, कीधो थो घणो अन्याय।
१. प्रायश्चित्त लेने पर।
लघु रास : ३७७