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११८ यारै पिण हुँतो अविनय रो रोग, आय मिल्यो सरीखो संजोग।
पांचूंइ मिलनै बांध्यो जिल्लो, यांनै कर्मी दीधो टिल्लो॥ ११९ विनयवान भाई गुणवान सूं तोड़ी , मूढ अविनीतां तूं प्रीत जोड़ी।
अधिक अविनीत रे कपट अपार, परपंच तणों नहीं पार ।। १२० एकदा निशि बहु साधां रै मांय, तीजो अविनीत बोल्यो वाय।
म्हानैं दीक्षा लियां नै थया घणां वास, छोटा लारै विचरूं तास। १२१ कुडब-कायदो म्हारो नहीं कोय, ते हूं मन में जाणूं छू सोय।।
रखे संसार घणो वध जाय, नहीं तो कर देखाउं ताय। १२२ गुरु कहै थारै याही मन मांय, तो हुँ साधां नै लेउं बोलाय।
थे करतां थकां देखाळोळा कबही, हूं कर देखा » अबही। १२३ इम सुण डरनैं बोल्यो इम वाण, हूं तो छू कीड़ी समाण।
हूं कहितो और नींकळ गयो और, इह विधि बोल्यो तिण ठोर।। १२४ घणां साधु कहै आ थे सूं कहि वाय, इम बोल्या बहु मुनिराय।
तठा पछै आसरै मास तांइ, जै पांचूं रह्या गण मांही। १२५ गुरु नै वादै तिक्खुता रो पाठ गुण नै, गुण कीर्ति अधिक थुणी नै।
आप तीर्थकर देव समान, बेहुं टक तज मान। १२६ मुख ऊपरै तो करै गुण ग्राम, छांनै-छांनै जिलो बांधै ताम।
गणपति रै मुख तो गुण गावै, छान-छांनै अवगुण दरसावै॥ १२७ मुख ऊपर तो बोलै राजी-राजी, छांनै-छांनै करै दगाबाजी।
गणपति नै बादै जोड़ी . हाथो, पगां में देवै नित्य-नित्य माथो॥ .१२८ वंदन करत करै गुण ग्राम, सारा पहिली लै गुरु रो नाम।
पंच पदां री वंदणा में कहेवै, तिण में गुरु रो नाम नित्य लेवै।। १२९ लोकां आगैइ करै गुण ग्राम, पिण मन रा मैळा परिणाम।
___ हाजरी नित्य प्रति लिखनै बतावै, ऊभा परषद माहै सुणावै।। १३० ते हाजरी तणीं कहूं छू बात, सांभळजो विख्यात ।
हाथ जोड़ी नै आप सूं ताम, अरज करूं छू स्वाम।। १३१ भिक्षु भारीमाल ऋषिराय, बलि जय आचार्य ताय ।
यांरी बांधी मर्याद अमूल्य, म्हारै छै सर्व कबूल। १३२ खोळी में सास रहै जठा तांइ, ज्यां लग जीव रहै तिण माहि।
अनंत सिद्धां री साख थी जाण, म्हारै लोपण रा पचखांण।।
१. बडा छोगजी (छोटा भाई)। २. कपूरजी।
लघु रास : ३७९