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________________ जोवो त्रिण च्यार दातार । आरे किया अणगार ॥ संघटो हुवो तिण रे । पिण तिण पगलो न भरियो तिवार, तिण रा कर स्यूं न लेणो लिगार । अनेरा नां हाथ सूं ते चीज, लीधां दोष किसी पर कहीज || वस्तु उठाय ने पग भरियो, साधु नें देवा संचरीयो । तो ते वस्तु अनेरा' ने हाथ, बहिरे नही मुनि विख्यात | ७७ (४६) साधु वरजतां पिण दातार, बहिरावा उठ्यो तिण वार । सचित्त वस्तु छै तिणरे पाहि, तेहिज असूझतो कहिवाहि || तिण उपाड्यो धोवण रो ठाम, तथा ढाकणी अळगी करी ताम । तथा रोटी कर सूं संघटाय, अन्य कर स्यूं पिण ते लीये नांय || तिण ने आरे न कीधो सोय, घर असूझतो नहि होय । आरे किया असूझतो थाय, विचार मन मांय || ८० (४७) साधु गोचरी गयो तिवार, बोल्या बे सहु देस्यां थोड़ो-थोड़ो आहार, सहु ने सहु बाहिरावतां एकण रे, सचित्त घर असूझतो इम थाय, आरे कीधा तिण न्याय || साधु गोचरी गयो तिवार, बोल्या बे त्रिण च्यार दातार । म्हारा सहु रा बहिरावण रा भाव, साधु बोल्या ते प्रस्ताव || अमकडीया रा कर स्यूं सोय, मुज बहिरवा रा भाव होय । ओरां ने तो आरे नही कीधा, सहु उठ्या बहिरावण सीधा ॥ आरे न कियां सचित्त संघटाय, घर असूझतो नहि थाय । सचित्त लागो आरे कियो जिण रे, घर असूझतो हुवो तिण रे || जळ लोट्या रे संघटे बेठी बाई, दूजी बहिरावण वाळी आई बहिरावण वाळी कनै बाल, संघटे वाली ने सूंपे ते काळ ।। तो पण तिरा कर स्यूं न लेणो, आरे कीधां असूझतो केहणो । पहिलां बरज देवे मुनिराय, तो तेहिज असूझतो थाय ॥ छठी दाल बहु न्याय समागम, उगणीसे सोलह महाविद आठम । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय, सुख संपति ज़यजश पाय ॥ ७५ ७६ (४५) ७८ ७९ ८१ ८२ (४८) ८३ ८४ ८५ (४९) ८६ ८७ १. अन्य ३. अमुक ३६४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था २. पास
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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