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५९ (३४) गेहूं जव मक्की चणा जवार, इत्यादिक मोटा धान विचार।
यांरो छाण्यो आटो बहिरंत,अछाण्यो नही लिये संत॥ ६० (३५) आहार थोड़ो जाणे तो सुचंग, मोटा धान रा आटो ले मंग।
ओसणियो तथा अणओसणियो, राग द्वेष रहित अनुसरियो। तिण में नीसरे धान रो दाणो, तो घर असूझतो हुवो जाणो। सुध ववहार जाणी ते लेवे, तिण में बुद्धिवंत दोष न केहवे॥ घृत तेल दूध दही मांहि, धान रो दाणो नीसरे ताहि ।
तो घर असूझतो नहीं थाय, तिण रा फर्श स्यूं अचित्त जणाय।। (३७) मुनि कीधो दातार ने आरे, छींक उवासी आइ तिण वारे ।
नाकस्यूं सूं सूं कियो ने खांसी, घर असूझतो नहीं थासी।। ६४ (३८) आरे किया पछेदातार, अजयणा स्यूं थूके तिणवार।
घर असूझतो जद कहणो, जेणा स्यूं थूक्यां तसु कर सूं लेणो॥ (३९) आरे कियां पछे मन रंगे, अजयणा सूं तमाखू सूंघे।
तो असूझतो घर केहणो, जयणा सूं सूंघ्यां तसु कर लेणो।। ६६ (४०) दातार रे मंढा में जाण. छोल्या सांठा रोगहो पिछाण।
दातार तिणरा कर स्यूं लियां दोषण नांय छोल्यो गट्टो अचित कहिवाय॥ साधां ने बहिरावता सोय, सांठा नो गट्टो छूहो जोय। तिण ऊपर जो पग लागे, तिणरा कर सूं बहरी लिये सागे।
आंधो पांगुलो छै कोइ भाई, अथवा पूरे मासेछै बाई इत्यादिक एहवा कारण वाळो, सूझतो बेठो तिण काळो।। कोइ सूझतो लेइ आहार, ज्यांरा मूंदे आगे म्हेले सार। तिण हाथ सूं ले मुनिराय तिणमें दोषण कहीजे नांय ।। सूजती पूर मासे बाई, साधु ने बहिरावा तांई दूजो सूझतो आहार लेवा ने, गयो तसु कर स्यूं बहिरावा ने॥ पूरे मासे बाई बेठी जेहने, सहजे सचित्त आवी लागे तेहने।
घर असूझतो न कहाय, बहिरावा रो कार्य जद नाय॥ (४३) तिण रा मुख आगल मेलवा ने, कोई गयो वस्तु लेवा ने।
सचित्त लागां असूजतो थायो, पहिला आरे कीधो मुनिरायो।। (४४) साधु वर्जतां पिण दातार, बहिरावण उठ्यो तिण वार।
सचित्त ऊपर लागो पाय, तेहिज असूझतो कहिवाय॥ तिण उपाइयो धोवण रो ठाम, साधु ने बहिरावण काम। सूझती रोटी आदि उपाड़, साधु ने देवा री मन धारी।
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