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लिखित सं० १८४१
_ ढाळ : ३
लिखित सं० १८४१ री जोड़
ढाळ : ३
दूहा १ वर्ष इगतालै स्वामजी, बांधी
चित लगाई सांभळो, सखरी
ए मर्याद। भाव समाध।।
'सुगुणा स्वामजी, भिक्षु लिखित किया भारी। नगीना नाथ जी, बांधी दृढ़ मरजाद उदारी ॥धुपदं॥ साध मांहो-माहै भेला रहै, त्यां दोष किण ही में देखी। तो ततकाल धणी नै कहिणो, ते पिण अवसर पेखी ।। दोष भेळा नहीं करणा जिण नै, धणी भणी कहवंता। प्राछित लैवे तो पिण गुर नै, कहि देणो कर खंता॥ जो प्राछित नही लेवै तो, प्राछित तणां धणी नै आरेकराय जे-जे बोल लिखी नै, सूप देणो तिण वारै।। इण बोल तणों प्राछित थां नै, गुर देवै ते दंड लीजो।
जो इण रो प्राछित नहीं होवै, तो ही गुरा नै कहिजो। ६ थे गाळागोळो मत कीजो, थे नही कहिसो तो धर रागो।
तो म्हारा कहिवा रा भाव छै, हूं नही काढूं आघो।। संका सहित दोष भ्यासे तो, संका सहित कहि देसूं। निसंकपणे दोष जाणूं छु, ते निसंकपणे कहिलूँ। नहीं तो अजे पाधरा चालो, इण विण तिण नै कहिणो।
पिण दोष भेळा नहीं करणा, प्रगट लिखत में वेणो॥ ९ जो उ आरै नहीं होवै तो, ग्रहस्थ पका है त्यांने। __जणावणो उण बैठाइज, कहिणो पिण नहीं छानै।।
चोमासा री एह वारता, जो हुवै शेखे काळो।
तो किण.ई नहीं कहिणो, गुरु हुवै जठे आवणो न्हालो।। ११ पिण सतगुर रे पास आयनै, वैदो घालणो नाहि ।
गुरु किण नै साचो करै, किण नै झूठो करै इज त्याहि ।।
१.लय : हठीला कान जी छल्ला मैं नहीं छोडूं । २. कदाग्रह। १२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था