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४९ चोथो पोहर लाग्यां करणों पडिलेहण, चक्र सूझे जठा तांइ ववहार।
अछाया पिण लागती नही दीसै, रवि अदृष्ट पिण तप्त पुद्गल तिण वार।।
(४१. सुधिया पडिकमणो करै) ५० रवि अर्ध बिंब में पाणी नही पीणो, तठा पछै तुरत मांडै पडिकमणो।
तिण मांहि पिण दोष मूळ न दीसै, मुहूर्त रात्रि गयां तांइ करणो॥ ५१ दिवस रात्रि में विचाले पडिकमj, करणो उत्कृष्टपणों कहिवाय।
अनुयोगद्वार' में पाठ उघाड़ो, तिण रो बुद्धिवंत जाणै न्याय॥ ___ अर्धबिंब पडिकमणो मांडे, ए उत्कृष्ट भांगे छै ताय।
इमहिज सूर्य उर्ग जठा तांइ, पडिकमणो कीधां दोषण नाय॥ ५३ एक मुहूर्त रात्रि पाछली हुवै जद, पडिकमणो मांड्यां दोषण नाय।
शीघ्र कियां रात्रि रहै थाकती, तिण में पिण दोष नहि जणाय॥ ५४ इमहिज रात्रि पाव घड़ी गयां तूं, पड़िकमणो मांड्या दोष न कोय ।
मुहुर्त रात्रि तांई करै संपूरण, तिण मांहे दोष किसी पर होय॥ पहिलो मुहुर्त ने छेहलो मुहुर्त रात्रि नो, ए तो छै काळ पडिकमणां रो ताय।
तिण बेलां पडिकमणों कियां दोष नहीं छै, ओर सूतर नहीं न करणी सज्झाय॥ ५६ प्रथम चरम पोहर रो पगां सूं छायां, मापो कह्यो छै उत्तराध्ययन मांय। विचला दोय पोहर रो काळ होवै जितरो, पहिला छेहला पोहर रो पिण
इतरो कहिवाय॥ ५७ ज्यां लग सूर्य दृष्टि आवै काळ जितरो, पहिलो छेहलो पोहर जो ओछो जाणो।
सूर्य अदृष्ट इतरो काळ दिवस छै, तिणस्यूं दिन रात्रि मध्य पडिकमणो ठाणो॥ ५८ रवि कोर दबी जाणी पाणी न पीणो, ए पिण जाणज्यो सुध ववहार।
पिण अपकाय री अजयणां न दीसे, पडिकमणो पिण मांड्या नही दोष लिगार।। (४२ पडिलेहण करे जठा तांइ जाबक बोलणो नहीं।
४३ गोचरी सूं आयां पछै सझाय करणी) ५९ उपधि पडिलेहता बोलणो नही छै, थंभी बोल्यां नहि दोष लिगार।
गोचरी स्यूं आवी जघन्य सझाय करने, सुखे समाधे करणों आहार।
(पोहर पोहर री च्यार काळ री सझाय करणी) ६० पहिले छेहले पोहर दिवस रात्रि में, जघन्य सझाय पांच गाथा' नी ताय।
उपयोग सहित करणी सुखे समाधे, राई पडिकमणो चउवीसत्थो सझाय॥
१. अणुओगदाराइं सूत्र २८ गा.२ २. अवशिष्ट ३. उत्तरज्झयणाणि २६.१३।१४
४. कम से कम ५. बत्तीस अक्षरों का एक गाथा होता है
पंरपरा नी जोड़ : ढा०३ : ३४५