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(४५. पोहर सूं इधिकी नींद लेणी नहीं इघिकी लेवे तो अठारै पाप रो
सेवणहार छै। माठा माठा सुपना आवै पांच वैरी जागै छै) ६१ आहार किया पहिला दिन रा सूइ ने, सुखे निद्रा लियां दोष नही छै ।
जीमी सुखे सूइ निद्रा न लेणी, बाल वृद्ध रोगी री बात न्यारी कही है। इमहिज पोहर रात्रि तांइ जाणो आचारंग तीजा अध्ययन पहिले उद्देशे। टीका में कह्यो आचार्य री आज्ञा सूं, दूजा पोहर सूं नींद लेणी ए रेस। (४८.खंडिया धोवण ने नित पाणी ल्यावै।)
४९. स्याही रै खातर पाणी ल्यावै वधै ते पीयै ते नित (नितपिंड) ६३ खंडीया धोवण पाणी नित्य ल्यावे, स्याही आदि निमित्ते नित्य ल्यावे।
'लेई' करवा निमित रोटी पिण ल्याव, तिण मांही दोष कहो किम थावै॥ ६४ सेज्यातरपिंड ग्रह्यां डंड भाख्यो, सेज्यातरपिंड भोगवियां पिण दंड।
नशीथ' सूत्र रे उद्देशे बीजे, प्रगट बे पाठ कह्या छै अखंड ।। राजपिंड ग्रह्यां प्रायश्चित कह्यो छै, राजपिंड भोगवियां पिण दंड। नशीथरे सूत्र रे उद्देशे नवमें, इणरा पिण बे पाठ कह्या छै अखंड। नितपिंड भोगवियां प्रायश्चित कह्यो छै, नितपिंड ग्रह्यां दंड न दाख्यो।
नशीथ सूत्र रे उद्देशे दूजै, पाठ एक श्री जिनवर भाख्यो। ६७ सेज्यातर रा दोय पाठ कह्या छै, राजा पिंड ना पिण पाठ छै दोय।
नितपिंड रो एक पाठ कह्यो छै,तिण सूं धोवादिक कारणे ग्रहणों सोय ।।
(५४ पातरो कपड़ो कारण पडियां पिण दोढ मास सुं इघिको राखणो नहीं) ६८ साधु जी वस्त्र आप रे निमत्ते, दोड मास यूं अधिको न राखे ।
नशीथे सूत्र रे पहिले उद्देशे, और साधु काज राख्यां दोष कुण दाखे। प्रमाण थी अधिक पात्र अळगी दूर थी, आणणों आचार्यादिक रे काज। तिण मांहे आहार भोगवणो चाल्यो छै, ववहार आठमें उद्देशे समाज ।। तीन तीन पात्रा पोता रा कल्प में, कोइ फूटो तथा रंग लगायो। कल्प में घटे जितरे पात्र भोगवणों, तिण सूं भोगवणों कह्यो दिसे जिनरायो॥
(५५ कोइ नवो दिख्या ले तिणरै वास्ते पिण न राखणो) ७१ नवो दीक्षा कोइ लेणहार छै, तिण रे अर्थे पिण दोड मास उपरंत।
वस्त्र पात्र जो अधिको राखे, तिण में पिण दोष न कहे मतिवंत।
१. निसीहज्झयणं २।४५,४६ २. निसीहज्झयण ९।१,२ ३. निसीहज्झयणं २।३१-३५
४. निसीहज्झयणं १।५४ ५. ववहार-सुत्तं ८।१६, पाठान्तर
३४६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था