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(२६. रोगीया ने नितपंड न लेणो। २७. खेतसीजी रे आथण रा तीन च्यार दिस दाल ने जाता। २८. रोगी रै वासते आण्यो ते वधै तो बीजां ने खाणों नही।
२९. छते पाणी रोगीया रे खातर नितपिंड ल्यावै) ४१ रोगी अर्थे नितपिंड पिण लेणो, दालादि अथै बहु दिशि जावै ।
कांइ चरकी फीकी कठै मिलै ते कारण,पिण बीजां अर्थं जाणी अधिक न ल्यावै॥ ४२ रोगी अर्थे नितपिंड आण्यो, बधे तो बीजां ने करणो आहार।
तिण मांहे दोष कोइ मत जाणो, बीजां अर्थे तो जाणी न ल्यावे लिगार। (३१. पातरा रंगणा नहीं। ३२. रोगन लगावणो नही। ३३. सुगंध रो दुगंध करणो नहीं। ३४. सुवर्ण रो दुवर्ण करणो नही।
३५. हींगलू धोवणो नहीं) ४३ तीन घुसली' उपरंत तेलादिक, अथवा वर्ण इम जाणो विशेष ।
पात्रा रे लगायां डंड चोमासी, नशीथ सूत्र रे चउदमें उद्देश ।। ४४ वर्ण रे कहिवे रंग पिण आयो, रोगान परंपरा थी जाणों ।
ते पात्रा रे लगावै नै वासी राखै, तिण मांहि दोष कोई मत माणो।। ४५ ममता सू लेप लगावणों नाहि, फाटवादि कारण थी रंग लगावै।
ते तीन पुसली उपरंत वा छै, नशीथ चवदमें उद्देश कहावे ।।
(३६, आर्या ने मेली पछेवरी देणी नही) ४६ साधु आर्या ने देवै ओढी पछेवड़ी, ते धोया विन भोगवणीं नाहि।
साधु मांहोमांहि देव ने लेवै, ते पछेवड़ी धोवणी नहि कांइ।
(३८. पडला रे बदले कपड़ो राखे) ४७ पडला रे बदले कपड़ो राखै, ते कारण बिन ओढणों नाहि ।
कल्प घट्यां तंतु दुर्लभ जाणै तो, ओढ्यां पहिरयां दोष न दीसै कांइ।
(३९. स्याही उघाड़ी सुकावै) ४८ स्याही उघाड़ी सुकावै तावडे, इमहिज हिंगलू ने पिण जाणों।
माछरादिक नी जो जाणै अजयणा, जब तो न मेलै उघाड़ी पिछाणों॥ (४०. सुधिया पडिलेहण करै)
३. बिछौने के ऊपर बिछाया जाने वाला वस्त्र
१. चुलू २. निसीहज्झयणं १४।१४,१५,१८,१९ ३४४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था