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________________ ३० बले महिं बहुमोला कळपता वस्त्र, भोगवियां ममता रो ठिकाणो। तिणरे लेखे वस्त्र पिण न भोगवणां, भोगवे तो पोता री भाषा रा अजाणो।। ३१ राग भाव ममत लोळपणां री, लहर आवे तिण री नहीं थाप। ते तो छै सर्व आलोवण खाते,पिण ते कार्य री आज्ञा दीधी जिन आप।। (१६. रातरी बायां ने थानक में बैसारे (नाथ दुवारे)) ३२ रात्रि समय बायां थानक माहि, दूजे ,खंड रही सुणै वखाण। तिण मांहि दोष साधु ने न लागे, एक खंड रह्या पहिली बाड़ री हाण॥ (१७. गृहस्थ साथे विहार करै) ३३ गृहस्थ साधु ने पहुंचावण आवे, अथवा दाम दियां बिनअन्य पठावै। तिण रो साधु में दोष न लागे, सावद्य आमना२ नाहि जणावे। __ फलाणे गाम जाणो छै म्हारे, कोई जातो हवै तो साथ बतावो। जद गृही पोते आवै तथा मेलै दूजा नें,निज कुशल बंछै पिण सावज रा न भावो॥ आदमी में थे दरसण करावो, इम न बोलै सावज वायो । तिण रो सावज चालणों तो नहीं बंछै, निज कुशल बंछै भाखा सुमति जणायो॥ ___ भाषा सुमति स्यूं वीर प्रभू पिण, न्यातीला ने सीख दीधी विख्यात। आचारंग दूजै श्रुतखंधे, पनरमाध्येन मांहे कहि बात ।। ३७ काळ कियां भासा सुमति स्यूं साधु, स्वजनादि गृहस्थ भणी जणाय। 'छठै ठाणै' कह्यो-आज्ञा न उलंघे, और भाषा समिति पिण तेहनी अपेक्षाय॥ ३८ गृही में सर्प खाधां कोई झाड़ो देवै छै, मुनि पिण जाय राखै तिहां काय। ववहार सूत्र रे पांचमें उद्देशे, निज कुशल बांछै पिण झाड़ो बंछै नाय॥ (२२. गृहस्थ साथे गोचरी जाए। २३. गृहस्थ जागां जोवै।) २४. गृहस्थ आय ने जागां बतावै। २५. गृहस्थ आय ने कहै अमकडियै घर अनादिक छै) । ३९ गोचरी रा घर पूछ्यां गृहस्थ में, साथे आय गृहस्थ घर बतावै। उतरवा री जायगां देख आय उतारे, तिण मांहि दोष साधु ने न थावे॥ ४० गृहस्थ घरां मांहि देख आवी कहै, अमकडिया घर असणादिक पाणी। साधु बहिरे सुध भिक्षा बंछी, सावद्य गमन न बंछै जांणी।। ५.ठाणं ६।३ ६. ववहार सुत्तं ५।२१ १. बहनें। २. आज्ञा। ३. अमुक। ४. आयार चूला १५।३४ पंरपरा नी जोड़: ढा०३: ३४३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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