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२९ आगम श्रुत ने आणा धारणा, जीत पंचमो साधक।
पंच ववहार पणे प्रवां , आज्ञा तणों आराधक।। ३० ए ठाणांग भगवती ववहारसूत्रे, आख्यो एम जिणंदा।
तो जीत ववहार उथापै ते तो, प्रगट जैन रा जिंदा॥ ३१ भिक्षु स्वाम तणीं ए बांधी, उत्तम वर मर्यादो।
विमल चित आराधे सुगणां, मेटी भर्म उपाधो।। ३२ उगणीसे चवदे विद नवमी, मास बैसाख मझारो।
जयजश गणपति संपति जोड़ी, लाडणूं महा सुखकारी ३३ समण छतीस आर्जिका बाणु, च्यार तीर्थ रंगरेळा।।
भिक्खु भारीमाल ऋषिराय प्रतापे, गणपति संपति मेळा।। ३४ प्रथम ढाल ए बोल परंपरा, प्रगट सरस गुण गाथा।
जयजश जोड़ करी सुध जाणी, गणपति सम्पति साता।
३३६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था