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ढाळ २
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दूहा
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सूत्र तणी रहिस केयक
अपेक्षाय बहु, बोल परम्परा मांय। नी समय में, केयक बोल अपेक्षाय॥
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भवियण जोवो रे हृदय विचारी, पांच ववहार छै सुखकारी।
शंक म राखो लिगारी रे भवियण जोवो॥धूपदं।। २ नदी नावा री आगन्या दीधी, सूत्र में जिनराय।
तिण री अपेक्षाय पृथ्वी आदि पिण, जिन आगन्या कहिवाय रे।। ३ प्राण बीज हरी पाणी ने माटी, छते रस्ते न जाणो ते पंथ।
दूजे आचारांग तीजे अध्ययने, प्रथम उद्देशे तंत। खाड विषमभूमि कादा ने मारग, छते रस्ते जाणो नाहि । दसवैकालिक पंचमे अध्ययने, पहिला उद्देशा माहि ।। विषम कादा ने मारग साध्वी पड़ती ने, साधु राखे हाथ संभाय।
वृहत्कल्प रे छठे उद्देशे, रस्तो नहीं तो विषम मारग जाय। ६ वृहत्कल्प रे पहिले उद्देशे, रात्रि सज्झाय दिशा अर्थे जाणो।
दिन रा मेह में दिशा जावा री आज्ञा, रात्रि नी अपेक्षाय पिछाणो। ___ साधु तीन हाथ चोड़ी पछेवड़ी राखै, साध्वी री अपेक्षाय।
साधु रे चोड़ी पछेवडी रो निर्णय, सूत्र में दीसै नाय ।। दसवैकालिक रे तीजे अध्ययने". मर्दन कियां अणाचार ।
अंजन वमन स्नान मूंह धोयां, गळा हेठला केश विदार॥ ९ वृहत्कल्प रे पंचमे उद्देशै, कह्यो कारणे मर्दन करणो।
__ अंजन वमन स्नानादिक नो, न कह्यो कारण रो निरणो।। १० तिण मर्दन री अपेक्षाय अंजन घाल्यां, कारणे नहीं दोष लिगारो।
बलि वमन करै जहर गोळी गिलियां, कारण पड़ियां मूंह धोवै सारो॥
१. रहस्य २. लय-रे भवियण जिन आगन्या सुखकारी ३. आयार चूळा ३।६,७ ७. दसवेंआलियं ५।१४
५. कप्पसुत्तं ६७,८ ६. कप्पसुत्तं १।४५ ७. दसवेआलियं ३९ ८. कप्पसुत्तं ५।३८ ३९
पंरपरा नी जोड़: ढा०२: ३३७