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________________ १४ चरचा बोल सीखे त्यां आगै, तिण रे डंक मिथ्यात रा लागै । यां रो संसतो परचो न कहणो, यां रो संग जाबक परहरणों ॥ १५ समगत रा अतिचार संभाळो, तो अवनीत सूं देजो टाळो । जोवो आणंद श्रावक नी रीत, राखो सुतर नी परतीत ॥ १६ ए अवगुण बोले चिठाय चिठाय, किण ही भोळा रे संका पड़ जाय । जो उ न करै त्यां री पखपात, तिणरो काढणो सोहरो मिथ्यात ॥ १७ त्यां री गाढी झाले पख कोइ, ते नही छोड़े रूढ झूठा जांणे तोइ । ते बूड़सी अवनीता रे लारे, त्यां ऐहलै दियो जन्म बिगाड़े || १८ केइ लीधी टेक न मेले, आप रे मन माने ज्यूं ठेले । जिण धर्म री रीत न जाणे, मूढ मूरख थको यूं ही तांणे ॥ १९ यां कनै करै को सामाइ, यां कनै करे पचखांण जाइ । तिण री पण मत जांणजो काची, जिण मारग में नही आछी ॥ २० जे अविनीतां रा छै पखपाती, त्यां री सुण-सुण बळ उठे छाती । अवनीतां रो करै उघाड़, जब पिण मूंढो देवे बिगाड़ || २१ कोइ गण में हुवै, अवनीत, तिण सूं गाढी बांधे प्रीत । ते पिण अवगुण बोलावण रे कांम, इसड़ा छै मेला परिणांम ॥ २२ ते अवनीत री करै पखपात, तिण रे आय चूको मिथ्यात । पख करै त्यांरी करवा थाप, तिण रे उसभ उदै हुवा पाप || २३ जांणे अभिमानी नै अवनीत, तो ही राखै त्यां री परतीत । तिण रे परतख पूरो, अंधारो, बूड़े छै अवनीतां री लारो || २४ जिण ने गुर रा ओगुण सुहावै, ते अवनीत नै मूंढ़े लगावै । त्यां कनै गुर रा अवगुण बोलावै, पछै लोकां में आप फैलावै ॥ इत्यादिक भीखणजी स्वामी रास में कही बलै और पिण समास घणो है। ते रास में जोय लेवो। इम जांण उत्तम जीव हुवै ते अवनीत री टाळोकर री निंदक री बेमुख री बेपता री कळहगारा री संगत न कर्या समकत चोखी रहै । बलै पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो - टोळा मांही कदाच कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो साध - साधवियां रा अंस मात्र अवगुणवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पड़ै आसता ऊतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै । टोळा सूं फार नै साथै ले जावा रा त्याग छै । उ आवै तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा माहै न बारै नीकळ्यां पण ओगुण बोलण रा त्याग छै। मांहोमां मन फटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै । इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो । तेभणी सासण री गुणोत्कीर्तन रूप बात करणी । भागहीण हुवै सो उतरती बात करै, तथा भागहीण सुणे, सुणी आचार्य नै न कहै ते भागहीण । तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी । अठाईसवीं हाजरी : ३२७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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