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गावै। कदा फेर अजोगाइ देख्या बारै काढ़े, कदा कर्म वसै आफै ही नीकळे, उलंठपणो करै अवगुणवाद बोले, पेली सूंस कीया ते सर्व भांजे, इहलोक परलोक री सर्व लाज मूंकी विटळ हुवै। तिण री बात मानणी नहीं, संगत बिलकुल करणी नी, भीखणजी स्वामी रास में वरज्यो ते गाथा१ ए तो अवगुण बोलै अनेक, बुधवंत न माने एक।
यां नै जाणे पूरा अवनीत, यां री मूळ नाणे परतीत ।। २ जो अवनीत रो करे विसवास, तो हुवै बोध बीज रो नास।
च्यार तीर्थ सूं पड़िया काने, त्यां री बात अज्ञानी माने। ३ अवनीत रो करै परसंग, तो साधां तूं जाये मन भंग।
ए साधां नै असाध सरधावै, झूठा-झूठा अवगुण बतावै।। ४ यां रो जाय नै सुणे वखांण, तिण लोपी जिनवर आण।
यां री तहत कहै कोइ वांणी, आ दुरगति नी एलांणी।। ५ किण रे उसभ उदै हुवै आंण, ते करै अवनीत री तांण ।
त्यां झूठा नै साचा दे ठेहराइ, त्यां रे अनंत संसार री साई। ६ यां नै कहि बतलावे स्वामी, तिण में जाणजो मोटी खांमी।
यां नै उंचो करै कोइ हाथ, तिण रे निश्चे बंधे कर्म सात। ७ यां रो जाय वखांण मंडावै, बलै और लोकां नै बोलावे।
इसड़ी कोइ करै दलाली, ते पिण धर्म सूं होय जाए खाली। ८ यां नै च्यार तीर्थ में जांणे, तो पिण पहिले गुणठाणे।
यां री करे कोइ पखपात, तिण रे आय चूको मिथ्यात॥ ९ यां सूं करै अलाप-संलाप, तिणरे बंधे चीकणा पाप।
यां नै वंदणा करै जोड़ी हाथ, तिण रे वेगो आवै मिथ्यात।। १० यांरी भाव भगत करे कोइ. बलै आदर सनमांन दे सोइ।
तिण रे सरधा नही दीसे साची, गुर री पिण परतीत काची।। ११ यां सूं करै विनो नरमाइ, तिणरे लागी मिथ्यात री साइ। ___ घणो-घणो जो यां कनै जावै, तो समकत वैगी गमावै ।। १२ ए तो अवनीत भागळ पूरा, बलै आळ दे कूड़ा-कूड़ा।
त्यां री मान लेवे कोइ बात, ते तो बूड़ चूका साख्यात॥ १३ कोई भणवा रा लालच रो घाल्यो, त्यां रे कनै जाय कोइ चाल्यो।
ते तो गुर रो न माने हठको, तिण रो हुँतो दीसै छै गटको।
१. लय : मारी सासू रो नाम छै फूली ३२६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था