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सतकार सनमांन देवै। कल्याणीक मंगलीक धर्मदेव चित अहलादकारी जांणी नै त्यां गुर री सेवा करै, त्यां रो उपगार कदै इ भूलै नही, जिण उपर एक द्रव्ये दिष्टंत
जिम कोइ एक मानवी सूळी हेठे आंण उभो राख्यो। सळी चढावा लागा इतले एक साहूकार आव्यो। जब चोर बोल्यो-सेठजी मो नै जीवां बचाओ आप राखो, आपका हुकम में रहितूं, आपरी चाकरी करतूं,आपरो गुण कदे इ भूलूं नही, इत्यादिक घणी नरमाइ कीधी। जब सेठ नै अनुकंपा आइ जद कळा चतुराइ सीखाइ। एकदा प्रस्तावे खामी पड्यां सेठ करला वचन कह्या। जब ते लूणहरामी रीस मेंआय सेठ कनांसू निकळ्यो। चोरपली में आय रह्यो। चोरां सूं जाय मिल्यो। चोरां सूं मिल नै चोरां ने साथ लेने सेठ घरे सातो देवा चोरी करवा आयो। पहिला सेठ ने खबर पड़ गइ हुंती ते लूणहरांमी चोरां सूं जाय मिल्यो है। सो कदा बिगाड़ कर उभो रहै तिण कारण सेठ पहिला हवेली रे कनै चोकी पहरायत सावधान पणे राख्या। ते चोरा सहित लूणहरांमी नै कपड़ लीयो। राजा नै सूप्यो। राजादिक सर्व लोक फिट-फिट करवा लागा। देखो ! सेठ तो इण नै सूली कनांथी जीवां बचायो, ते सर्व उपगार भूल नै ज्यां रो हीज बिगाड़ करवा लागो। सेठ तो इण सूं क्यूंइ अवगुण कियो नही। देखो लूण-हरांमी कृतघनी हरामखोर नी चाल। ज्यां जीवां बचायो ज्यां सूं हीज उपराठो हुवो,इम सर्व कहवा लागा। पछै राजा हुकम कियो-इण कृतघ्न नै काळो मूढो करी, गधै चढाय नगर में उद्घोषणा करो-कृतघ्नपणो कियो जिण रा ए फळ भोगवै। पछै राजा हुकम थी काळो मूंढो करी गधै चढाय नगर में फेर उदघोषणा करी मुंडे हवाले मारयो। जे लूणहरांमी रे साथै चोर आया त्यां नै पिण मुंडे हवाले मास्या।
इण दृष्टंते कोइ मिथ्यादृष्टी हुँतो तिण नै सतगुर मिल्या। त्यां समजाय समकित श्रावकपणो पमाय नै साधु कीधो। नरक निगोद रा अनत दुःख मेट्या एहवो उपगार सतगुर कियो। बले तिण नै कला सिखाई ते सिष में खांमी पड्यां गुरां निषेध्यो तथा तिण रो स्वार्थ अणपूंगा धैष में आयो। छांनै -छांने साधां कनै अवगुण बोल फटावा रो उपाय करवा लागो। तिण सरीषा इ अविनीत तिण नै साथै लेइ टोळा बारे नीकळे,अवर्णवाद बोले, देखो अवनीत री रीत। गुरां समकित चारित्र पमाय, सिद्धांत भणाय, अनंता नरक निगोद रा दुःख मेट्या ते सर्व उपगार विसारे घाल, त्यां रो विनो भगत करणो तो ज्या ही रह्यो अपठो किंचत स्वार्थ रे वास्ते अवगण बोले। तिण संगुर कांइ अवगुण कियो, गुरां तो असंजती रो संजती कीयो, अनंत काळ नरक निगोद में रुळता अनंत भूख तिरखा सीत तप्त विवध प्रकार नी मार इत्यादिक दखनो नास नोकरणहार अमोलक चारित्र तिण नै पमायो। जावजीव तांइ त्यां रे मूहढे आगे हाथ जोड़ सेवा करै तो त्यां सूं उरण नही हुवै। गुरां तो इण सूं इसो उपगार कीयो। त्यां रा हीज अवगुण बोलवा लागो। देखो! लूणहरामी कृतघनी री नीत। टोळा माहै छतां तो पंच पदा में नाम घाले तिखुत्ते सूं वंदणा करै। लोकां नै वंदना सीखावे। तिण में गुर को नाम घलावै गुरां के गुणांरी जोड़ कर नै सुणावे अनै टोळा बारै निकळ्यां अवगुण गावै। फेर पोते दंड लेइ पाछो गण में आय नै गुर रा गुण
अठाईसवीं हाजरी : ३२५