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________________ अठाईसवीं हाजरी पांच समिति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणां। ईऱ्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करी लेणो। सूजतो आहारपाणी पिण आगला रो अभिप्राय देख लेणो। पूजतां परिठवतां सावधानपणे रहिणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहिणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धांत देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म नै अविरत अधर्म। आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारै अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। - संवत् १८५० रे वरस मर्यादा बांधी सर्व साधां रे, तिण में कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो, अथवा गुरां ने कहणो, पिण ओरां नै न कहणो। घणां दिनां पछै आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उ हीज छै। किण नै ही कर्म धक्को देवै ते टोळा सूं न्यारो पड़े तो इण सरधा रा भाई बाई हुवै तिहां रहिणो नही। एक बाई भाई हुवै तिहां पिण रहिणो नही वाटै वहितो रहै तो एक रात, कारण पड़यां रहै तो पांचू विगै सूंखड़ी खावा रा त्याग छै। तथा पैंतालीसा रा लिखत में कह्यो-साधां रा मन भांग नै आप आप रे जिले करै ते तो महामारीकर्मो जाणवो। विसवासघाती जाणवो। तथा पचासा रा लिखत में तथा रास में पिण जिला नै घणो निषेध्यो। तथा पैंतालीसा रा लिखत में कह्यो-उण नै साधु किम जांणिये जो एकलो हुण री सरधा हुवै, इसड़ी सरधा धार नै टोळा माहै बेठो रहै, म्हारी इच्छा आवसी तो माहै रहसूं, म्हारी इच्छा आवसी जद एकलो हुसूं। इसड़ी सरधा सरधा सूं टोळा माहै ते तो निश्चेइ असाध छै। साधपणो सरधे तो पेला गणठाणा रोधणी छै। दगाबाजी ठागा संमोहै रहै तिण नै माहै राखै जांण नै त्यां नै पिण महादोष छै। कदाच टोळा माहै दोष जांणे तो टोळा माहै रहिणो नही। एकलो होय संलेखणा करणी वैगो आत्मा रो सुधारो करणो। आ सरधा हुवै तो माहै राखणो। गाळा गोळो कर नै रहै तो राखणो नहीं, उत्तर देणो, बारै काढ देणो, पछै इ आळ दे नीकळे तो किसा काम रो। इम इत्यादिक अवनीत वेमुख नै ओळखायो छै अनै दुष्ट आतमा रो धणी अवनीत अजोग तिण रा स्वार्थ अणपूंगा किचत कष्ट थी पिण टोळा बारै नीकळी भीखणजी स्वामी री मर्यादा लोपी सूंस भांगी अवर्णवाद बोले। निरलज नागड़ो होय जावै। परम उपगारी गुर समकित चारित्र पमायो, सूत्र भणायो, ते कीधो उपगार सर्व भूल ने कृतघन होय जगत में फिट-फिट होवै। तथा सूयगडांग भगवती आदि सूत्रे ठांम-ठांम कह्यो-जे कोइ समण माहण कनै धर्म रूप एक वचन पिण हीया में धारे ते पिण गुर नो उपगार जांणी नै वांदै, नमस्कार करै ३२४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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