SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बली ग्रहस्थ्यां मांहि खारे, जणाय आमना एक-एक री आसता उतारे। तिका आर्या महादुखकारी, तिण में तो अवगुण बोहलाइज छै अति ही भारी। फतूजी नै माहै लीधा, लिखत तिको सहु समणी नै कबूल छै सीधा। तसु विरला जाणे निरणा, सुगुरु आण मर्याद०।। बलै बहु बोल अनेकां री, करड़ी मर्यादा बांधै ते कबूल छै ज्यां री। त्याग नां कहिवा रा त्या ही, कर्म जोग किण ही सूं च आचार पलै नांहि। मांहो मां स्वभाव अण मिलती, तसु साधु काढै गण बारै तथा क्रोध वस थीअलग हो छांडै गण सरणा, सुगुरु आण मर्याद०॥ दूर है गण थी अपछंदी, ते तो झूठ अनैक वदै कर्मा वस मति मंदी। आल कूड़ा-कूड़ा देवे, अथवा भेषधास्यां में जावै कलुष भाव वेवै। कियो संसार अनंत आरै, कपट अनेक प्रकार केलवै चरित्र नैं हारे। तास संगत सेती डरणा, सुगुरु आण मर्याद०॥ टाळोकर कर्म वसै झोले, विविध झूठ ते तो बोलेइज का नहीं पिण बोले। इसी जे निलज' भेष भंडी, तसु बात भेषधारी भारीकर्मा मानै खंडी। जीव उत्तम तो नहीं माने, टाळोकर नै दूर तजी नै आप हुवै कानै । इसी विध मिटै जनम-मरणां, सुगुरु आण मर्याद०॥ टोळा सूं छूट हुवै कानै, बात मानै तसु मूरख कहीजे चोर कह्या त्यांने। आळ दे अनेक अनेको, १७ १८ १.बेशर्म २. अलग लिखतां री जोड़ : ढा० २ : ९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy