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इसी भाषा पिण जो कैवै, मुनि इच्छा आवै जितरा दिन विगय त्याग देवै। तकै पिण कबूल ही करणा, सुगुरु आण मर्यादा० ।। जिका आरजियां नै ज्यां ही, और आरजियां साथै मेल्यां नां कहिणों नाही। आण लोपी नै नही जावै, पंच विगै रा त्याग न जावै जितरा दिन पावै ।
और बली दंड जठा बारै, अविनय अवगुण दूर करी गुरु आणा शिर धारै। वयण सतगुर नां अनुसरणा, सुगुरु आण मर्यादा०॥ साधां रा मेल्यां विण अज्जा,
और तणी अज्जा अन्य साथै जाये तज लज्जा। जिता दिन रहै तास पासो, पंच विगै रा त्याग तिता दिन अवगुण दुख रासो। अपर वलि प्राछित है भारी, ते तो दंड जठा वारै है आणा अधिकारी। आण लोप्यां सैं दुःख भरणा, सुगुरु आण मर्याद० ।। आरजियां जिण साथै मैली, अथवा माहोमांही आरजियां चोमासे भेळी। तथा भेळी शेषे काळो, तसु दोष हुवै तो साधु मिलियां कहिणो ततकाळो। कदा न कहै तसु पख बतियां, उतरो ही प्राछित उण नै छै सुणज्यो सहु सतियां। सखर आणा ना ल्यो सरणा, सुगुरु आण मर्याद० ।। पछे बहु दिन आडा घाली, साचो अथवा झूठ कहै तो उवा जाणै बाली। तथा जाणै जिन आणंदी, छद्मस्थ तणे व्यवहार बहु दिन सूं कहै ते मंदी। राग अरु द्वेष वसै भाखै, निज स्वारथ न कहै नै, स्वारथ नहीं पूगां आखै। तास परतीत नहीं करणा, सुगुरु आण मर्याद०॥
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८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था