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उण रो वलि मन भागै जेहवो, वचन कहीनै मन भागै तो दंड इसो देवो। पनर दिन पंच विगै केरा, ए पचखांण अछै तिण ने निंदै तसु अधिकेरा। दोष छोड्यां शिवपद वरणा, सुगुरु आण मर्याद०॥ मांहोमां कहै इसी वाणी, तू संसां री भागल एहवो वचन वदै ताणी। तास दिन पनरै लग त्यागो, जिती वार कहै जिता पनर दिन त्याग तणों मागो। आंसू काढे जितरी वेलो, दश दिन त्याग विगै रो के दिन पनर मांहि बेलो। अमल चित अंगीकार करणा, सुगुरु आण मर्यादा०॥ इत्यादि वच करड़ा काठा, कहै तसु प्राछित यथाजोग है मिटै लखण माठा। कह्या ए विगय तणां त्यागो, इच्छा उण री हुवै जदी पाळी टाळे दागो। साधां सेती मिलियां पहिला, त्याग विगै रा तास पाळणा मन शुद्धि कर महिला। इसी विध अवगुण अपहरणा, सुगुरु आण मर्यादा०॥ विगय नहीं टाळे धर रागो, अपर अजा नै यूं नही कहिणो तूं पाळईज त्यागो। साधां सूं मिलियां कहिवेसी, साधां री इच्छा आवै ते अपर दंड देसी। ते पिण द्रब क्षेत्र काळ परखो, साधां री इच्छा आवै तो विगै त्याग अधिकोकरासी ते पिण कर निरणा, सुगुरु आण मर्यादा०।। आरजियां रे माहोमांहि, साधु-साधवियां नै नहि कल्पै नही शोभै क्यां ही। लोकां ने अणगमती लागै, जातादिक रो जेह चणो सुण्यां द्वेष जागै।
१. प्रतिज्ञा २. अन्तरंग
३.द्रव्य
लिखतां री जोड़ : ढा० २ : ७