________________
लिखित सं० १८३४री जोड .
ढाळ : २
दूहा संवत् अठार चोतीस में, समणी नो सुखकार। भिक्षु लिखत कियो भलो, निसुणो सहु नर-नार॥ 'स्वाम भिक्षु वच हिय धरणां,स्वाम भिक्षु वच हिय धरणा। सुगुरु आण मर्याद अराध्यां, भवदधि सें तरणां॥ध्रुपदं॥
सर्व आरजियां रे लज्जा, एक लिखत कीधो ते निसुणो अजा भणी,अज्जाक्रोध वस तूंकारो देवै, पंच-पंच दिन पंच विगै रा त्याग तिके लेवै। जिता तूंकारा जे काढ़े, जिता पंच-पंच दिवस विगै रा त्याग सिरै चादै। वयण इसड़ा नहि उच्चरणा, सुगुरु आण मर्याद०॥ बलै बोले जो ते अजिया, तूं झूठा बोली एहवा वच भाखे तज लजिया। जिता दिन पंच-पंच जाणी, पंच विगै रा त्याग तास बोली ए अलखाणी। डंड आयां मोसो बोले, सुगन जन दूषण से डरणा, सुगुरु आण मर्याद०॥ टोळा ना संत आरजियां नी, ग्रहस्थ आगै करै उतरती निंद्या दुख खाणी। तास घणी अजोग जाणेणी, एक मास ना त्याग विगै पांचूं नहीं देणी। करै निंद्या जितरी विरिया, जितरा मास विगै पांचूं रा त्याग अनुसरिया। इसा अवगुण नै परहरणा, सुगुरु आण मर्याद०।। बात अजिया री मांहोमांहि, उण रो ‘परतो वच' उण आगै कहै जु दुखदाइ।
१. लय : सुगुरु की सीख हिये धरणा। २.हीनता-सूचक वचन।
६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था