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अनंता सिद्धां री साख कर ने। कोइ टोळा रा साध-साधवियां में साधपणो सरधो, आप मांहे साधपणो सरधो, तिको टोळा में रहिजो। कोइ कपट दगा सूं साधां भेळो रहै, तिण नै अनंता सिद्धां री आंण छै। पांच पदां री आण छै, साध नाम धराय नै असाधा भेळो रह्यां अनंत संसार वधे छै, जिण रा परिणाम हुवै ते इतरी परतीत उपजाओ, किण ही साध-साधव्यां रा ओगुण बोल नै किण ही नै फार नै मन भांग नै खोटो सरधावण रा त्याग छै। किण ही रा परिणाम न्यारा होण रा हुवै जद ग्रहस्थ आगै पेळां री परती करण रा त्याग छै। जिणरो मन रजाबंध हुवै, चोखीतरे साधपणो पळतो जांण नै रहिणो। आप में पेळां में साधपणो जांण नै रहिणो ठागा सूं माहे रहिण रा अनंता सिद्धां री साखं सूं पचखांण छै।
तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-कोइ कर्म जोगे टोळा मांहे सूं फाड़ातोड़ो करी नै एक दोय तीन आदि नीकळे, धणी धुरताइ करै, बुगल ध्यानी हुवै, त्यां नै साधु सरधणां नही। च्यार तीर्थ माहे गिणवा नहीं। त्यां नै चतुरविध तीर्थ रा निंदक जांणवा। एहवा नै वादे पूजे ते जिण आगन्या बारे छै कदाच फेर दिख्या तीर्थ रा निंदक जांणवा। एहवा नै वादे पूजे ते जिण आगन्या बारे छै कदाच फेर दिख्या लेइ ओर साधां नै असाध सरधायवा नै तो पिण उण नै साध सरधणो नही। उण नै छेरवियां तो उ आल दे काढ़े तिण री एक बात मानणी नहीं, उण तो अनंत संसार आरै कीयो दीसै छै। ___इहां पिण टोलोकर नै घणो निषेध्यो छै। केइ कर्म वसै गण छोड़ नै नीकळे, केयक तो एकला ही नीसरे, अनै केयक दोय तीन आदि नीकळ नै पछै एक-एक फिरता रहै। अनेक-अनेक उंधी परूपणां करै। तिण नै भीखणजी स्वामी एकल रा चोढाळ्यां में तथा एकल री चोपी में एहवी गाथा कही
दोहा
१ भला कुळ री बिगड़ी तिका, जोवे विराणां साथ।
ज्यूं साध बिगड्यो आचार थी,ते किण विध आवै हाथ।। २ आज्ञा लोपी सतगुर तणी, तिण में ओपमा छै गळियार।
आप छांदे एकलो भमे, ज्यूं ढोर फिरै रुळियार ॥ ३ बिगड्या धान री पाखती, बेठां दुरगंध आय।
ज्यूं एकल री संगत किया, बुद्धि अकल पत जाय। ४ जो एकल नै आदर दीये, तो वधै घणो मिथ्यात। ___ फूट पडै जिण धर्म में, ते सुणजो विख्यात॥
१. घर-घर भटकने वाला।
२.प्रतिष्ठा ३०० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था