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१ जिण सासण में आज्ञा बड़ी, आ तो बांधी रे भगवंता पाळ। ए तो सज्जन असज्जन भेळा रहे, छांदे चाले रे प्रभु वचन संभाळ।।
बुधवंता एकल संगत न कीजिये।। २ छांदो रूंध्यां विण संजम नीपजै, तो कुण चाले पर नी आग्या मांय।
सहु आप मते हुवै एकला, खिण भेळा खिण बिखर जाय। आप मते एकला हुआ, तो सासण में पर जाए घमडोल।
एहवा अपछंदारी करै थापना. ते पिण भला भेद न पायो रहगी भोल। ४ वेराग घटै उण री पाखती, के उण संगत आवै मूळ मिथ्यात।
के साधा सूं उतर जाए आसता, साची सरध्यां एकल री बात। ५ ते तो भिड़कावै साधां रा समदाय सूं, आपस में बोले विरुवा वैण।
बलै छिदर धरावै एक-एक नै, साधूं दीठा बळे अंतरंग नैण ।। ६ नकटादिक चोर कुसीळिया, वधी चावै आप आपणी न्यात।
ज्यूं भागल नै भागल मिलै, घणूं हरखे करे मनोगत बात ।। ७ चोरी जारी आदि खून अकारज कियां, राजा कपड़े करै छविछेदे खोड़।
बलै देश निकाळो दे काढियां, त्यां नै राखै भील मेणादिक चोर॥ ८ ते बिगाड़ करै तिण देश मे, भील मेणां त्यां नै आंणी-आंणी साथ।
दुःख उपजावै रेत गरीब नै, धन ले जावै कर कर त्यांरी घात। ९ त्यां नै असणादिक आदर दियां, लफरो लागै भांग्या राजा तणी आंण।
कदा राय कोपे तो धन खोस ले, जीवां मारे तिण रा ए फल जाण। १० इण दिष्टंते साधां रा समदाय में, दोषण सेव्यां साधु कालै गण बार।
ते आप छंदे एकला रहै, के भागल आगै पाछै फिरे लार। ११ ए तो साधां रा अवगुण बोलता, मुख मीठो खेले अंतर घात।
ओछी बुद्ध वाला नै विगोवता, कूड़ी कथणी कूड़ी कर-कर बात। १२ त्यां री भाव भगत संगति किया, तिण भांगी भगवंत नी आंण।
ते तो दुःख खमे इण संसार में, उत्कृष्टा अनंत जन्म मरण जाण॥ १३ चोर नै तो आहार आदर दियां, इह लोके धन जीतब नो विणास।
भेषधारी नै भागल एक तणी, संगति कीधा कर्म तणी रास ।। १४ उसनां कु सीलिया नै पासथा, अपछंदा संसतादिक जाण ।
त्यां नै तीर्थ में गिणवा नही, आ कर लीजो जिण वचन प्रमाण।।
१. लय-चोर हंस अनै कुसीलिया। २. प्रजा।
बाइसवीं हाजरी : ३०१