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________________ बाइसवीं हाजरी पंच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा । ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणो लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रौ अभिप्राय देख नै लेणो । पूजतां परिठवतां सावधानपणे रहणो । मन वचन काय गुप्ति में सावचेत रहिणो । तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी । भीखणजी स्वांमी सूत्र सिद्धान्त देख नै आचार सरधा प्रगट कीधी- विरत धर्म नै अविरत अधर्म | आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारै अधर्म । असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग । तथा विविध प्रकार री मर्यादा बांधी - किण ही साध आय में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो । तथा गुरां नै कहणो, पिण ओरां नैन कहणो । घणां दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्रायछित रो धणी उ हीज छै । तथा संवत् १८५२ रे वरस आय रे मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो कि साध आय में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो तथा गुरां नै कहिणो, और किण ही आगे कहणो नहीं । किण ही आर्य्यां जांण नै दोष सेवे तो पाना में लिख्यां विना विगै तरकारी खांणी नही। कोइ साध आर्य्यां रा अवगुण काढै तो सांभळण रा त्याग छै । इतरो कहणो स्वामी जी नै कहिजो । जिण रा परिणाम टोळा मांहे रहण राहुवै हिजो । पिण टोळा बारै हुवा पछै साधु-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंता सिद्धां साख कर नै त्याग छै । बलै करली - करली मर्यादा बांधे त्यां में ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै । तथा चोतीसारे वर्स आय रे मर्यादा बांधी तिण में को-टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करै तिण नै घणी अजोग जांणणी, तिण नै एक मास पांचू विगै रा त्यागं छै । जितरी वार करै जितरा वार मास पांचू विगै रा त्याग छै । जिण आय्य साथे मेल्यां तिण आय भेळी रहै अथवा आर्य्यां मांहो मांहि सेषे काळ भेळी रहै अथवा चोमासे भेळी रहे त्यां रो दोष साधां सूं भेळा हुवा कहि देणो । नहीं कहै तो उतरो प्राछित उण नै छै । टोळा सूं छूट न्यारी हुवां री बात मांनै त्यां नै मूरख कहिजे, चोर कहीजे, तथा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में को-कर्म धको दीधां टोळा सूं टळै तो टोळा रा साध-साधवियां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै । टोळा नै असाध सरण नै नवी दिख्या लेवे तो पिण अठीरा साध - साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै । उपगरण टोळा मांहे करै ते, परत पाना लिखे जाचे ते, साथे ले जावण रा त्याग छै । तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो किण ही नै कर्म धको देवे तो टोळा सूं न्यारो पड़े अथवा टोळा सूं आप ही न्यारो थयो । इण सरधा रा बाई भाई हुवै तिहां रहिणो नहीं । वाटे वहतो एक रात, कारण पड़िया रहै तो पांचू विगै नै सूखड़ी खावा रा त्याग छै । बाइसवीं हाजरी : २९९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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