________________
१० इह लोक रा गुर रा अवनीत री, अकल बिगड़ गइ एम।
तो धर्म आचार्य रा अवनीत री, उंधी अकल रो कहवो केम।।
इम वनीत अवनीत रा विचारणा रो फेर कह्यो। ते माटे अवनीतपणो छोड़े, वनीतपणो आदरे।
तथा पैंताळीसा रा लिखत में एहवो कह्यो छै–टोळा मांहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध-साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पडै आसता ऊतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा बारै फाड़ नै साथे ले जावा रा त्याग छै। उ आवै तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा मांहे अनै बारै नीकळ्यां पिण ओगुण बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करै। तथा भागहीण सुणे तथा सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भाग- हीण। तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी।
आयारिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥ आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो।
गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं॥ इति 'दशवैकालिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा सुद्ध आराध्यां इह भव परभवे सुख कल्याण हुवै। ए हाजरी रची संवत् १९१४ रा सावण विद ७
१. दसवेआलियं, ५/२/४५,४०
२९८
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था