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छै।
६० सेंतीस वरस समत अठार, काती सुध एकम सनीसरवार । निन्हव भागल रो विसतार, कीधो पादू गांम मझार |
इम रास में पिण स्वांमी भीखणजी अवनीत नै टालोकर नै भांत भांत कर नै ओळखायो
तथा पैंतालीसा रा लिखत में एहवो कह्यो छै-टोळा मांहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारैं परै तो टोळा रा साध - साधवियां रा अंस मातर अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै । यां री अंसमातर संका परै आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मां सूं फार नै साथे ले जावण रा त्याग छै । उ आवै तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा मांहै नै बारै नीकल्यां पिण ओगुण बोलण रा त्याग छै । इम पैंतालीसा रा लिखत में कह्यो । ते भणी सासण री गुणोत्कीर्त्तन रूप बात करणी । भागी हुवै सो उतरती करै, तथा भागहीण सुणे, सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भागहीण, तिण तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी ।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं ॥ आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं ॥ इति 'दशवैकालिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा सुद्ध आराध्यां इह भव पर भव में सुख कल्यांण हुवै।
ए हाजरी रची संवत् १९१४ रा सावण सुदि ८
१. दसवे आलियं, ५।२।४५,४०
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था