________________
४४ एहवा अभिमानी नै अवनीत, होसी चिहुं गति माहै फजीत।
यां नै मूंडा कह्यां लोकां आगै, यारा पखपाती रे दाह लागै। ४५ ए समचे भाव कह्या छै जांण, कोइ आप में म लीजो तांण।
एहवा अवगुण छै तिण मांय, ते छोड्यां विण सुख नही थाय।। ए बिगड़ायल जैन रा पूरा, त्यां नैं कर दिया गण सूं दूरा।
लाज सरम त्यां अळगी मेली, भेषधारी भागल त्यांरा बेली।। ४७ ए साधां में दोष बतावै, ते भेषधारयां रे मन भावे।
यां री ठंडी कीधी यां छाती, ए पिण हुवा त्यां रा पखपाती। ४८ यां तो दुरगति री नींव दीधी, भेष धारयां रे खरची कीधी।
इण खरची सूं होसी खुराब, पड़सी चिहुं गति मांहे आब॥ __ ए तो आगै इ देता था आळ, ते झूठ रो क्यांनै कालै निकाल।
ओ सहजे पड़ियो झूठ पाने, हिवै ए क्यांनै राख्या छांने।। ५० भेषधारयां रा श्रावक आवै, त्यां सूं तो घणा मिल जावै।
त्यांनै मीठा वचना बोलावे, त्यां आगै गुर में दोष बतावै।। ५१ जब ए पिण राजी होय जावै. असणादिक आछी रीत वेहरावे।
बलै ए पिण यां नै पोगां चढावै, वारूवार ओगुण बोलावे।। ५२ बलै माहोमां कळहो दे लगाय, आंमी सांमी भेटी मेले ताय। .
यां रे आगै इ साधां तूं धेष, तिण सूं यां री मांने वशेष।। ५३ बलै यां नै पूछै केइ एम, थांनै गण बारै काढिया केम।
जब ए कहै म्हांनै काढ़े क्यांनै, म्हे तो ढीळा जांणे छोड्या यांनै।। इसड़ा झूठ बोले जाण-जांण, तिणरो कठेइ नहीं परमाण।
यां नै छोड्या एकीका नै ताय, तका तो बात दीधी छिपाय।। ५५ कमलप्रभा आचार्य ने देखो, तिण विचे यां री बिगड़ी विशेषो।
उण वचन फेस्यो एक वार, तो उ रुलीयो अनंत संसार।। ५६ ए तो बके घणां दिन रात, कूड़ कपट सहित करै बात ।
बलै विवधपणे देवे आळ, तो ए रुलसी कितो एक काळ॥ ५७ इसड़ा अनंत हुआ नै होसी, परभव सामो विरला जोसी
बलै आरा अजूणा मांहि, म्हे पिण देख लिया छै ताहि।। ५८ ए भाव कह्या तिण मांहि, कोइ बोल टळे छै ताहि ।
केइ अनुसारे मेल्या छै न्याय, कोइ बोली रो फेर छै मांय॥ ५९ इत्यादिक यां में ओगुण जांण, जब लागा छै जेहर समांण।
यांनै निन्हव जाणे किया दूर, तिण में मूळ म जांणजो कूड़।।
बीसवीं हाजरी : २९३