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२८ कोइ गण में हुवै अवनीत, तिण सू गाढ़ी बांधे पीत।
ते पिण ओगुण बोलावण रे काम, इसड़ा छै मेला परिणाम। २९ जिण रो धेष छै घण दिन पेळो, दुष्ट परिणाम जीव छै मेलो।
तिण रे उदै हवै कर्म मिथ्यात, ते तुरत मांने त्यां री बात। ३० ते अवनीतां री करै पखपात, तिण रे आय चूको मिथ्यात।
खप करै त्यां री करवा थाप, तिण रे उसभ उदै हुआ पाप॥ ३१ जांणे अभिमानी नै अवनीत, तो ही राखे त्यां री परतीत।
तिण रे परतख पूरो अंधारो, बूड़े छै अवनीत रे लारो॥ ३२ जिण नै गुर रा अवगुण सुहावे, ते अवनीत नै मूंढे लगावे।
त्यां कनै गुर रा अवगुण बोलावे, पछै लोकां में आप फैलावे॥ ३३ करै जिण तिण आगै बात, करै अवनीतां री पखपात।
अवनीतां नै साचा सरधावे, गुर मांहे ओगुण दरसावे॥ ३४ वांदे तो गुर नै सीस नांम, करै अवनीतां रा गुण ग्रांम।
ते होय बेठा अवनीतां री लारी, बलै ओरां नै खपे करवा खुवारी॥ ३५ गुर सूं लोकां रा परिणाम फाड़े, आप बिगड्यो ओरां नै बिगाड़े।
इसड़ो श्रावक विश्वासघाती, ते पिण होय चूको मिथ्याती॥ ३६ गुर री सांची बात दे ठेली, अवनीतां रो होय जाय बेली।
हर कोइ अवनीत छूटे, तिण रो बेली आप होय उठे। ३७ साधां रा अवगुण अवनीत बोले, तिण सूं बात करै दिल खोले।
अवनीत नै मिलिया अवनीत, त्यां री तेहीज करै प्रतीत । ३८ गुर सूं पिण जाबक नहीं तोड़े, अवनीत सूं पिण सटके नही जोड़े।
धर पाधर रह्या छै देख, छळ-छिदर जोवे छै विशेष ।। ३९ जो अवनीत नै लोक न माने, तो आप पिण होय जाए कांने।
अणसरते दबिया रहे मांहि, पिण लखण भदरलीया ताहि।। ४० केइ श्रावक दोपड़पीटा, ते पिण पडिया यां रे संग फीटा।
जो कोइ बंध निकाचित पाड़े, ते पिण अनंत संसार वधारे॥ ४१ केइ श्रावक भागल साख्यात, ते भागलां री करै पखपात।
जांणे चोर सूं मिल गई कुती, झूठी बात करै अणहुंती॥ ४२ ते भागला नै कहै उत्कष्टो, तिण री पिण मत हो भिष्टो।
तिण भागला नै भागल मिलिया, जब पूरीजे मनरलिया।। ४३ असाधां नै सरधे साध, साधां नै सरधे असाध।
दोनूं प्रकारे मूर्ख बूड़े, ते पिण जाय बेससी तूंडे ।। २९२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था