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________________ १३ विनय मूळ ए धर्म नैं, न्याय मार्ग चालण रो उपाय। कीधो छै समय देखी करी, इम कह्यो लिखत रे मांय॥ १४ भेषधारी विकला भणी, मूंडी नैं भेळा करंत। ते शिषां रा भूखा एक-एक रा, अवर्णवाद बोलंत ।। १५ ते मांहोमांहि फारा-तोरो करै, करै कजिया' राड असमाध। एह चिरत त्यां रा देखनै, बांधी छै मर्याद।। १६ शिष शाषा रो संतोष कराय नैं, सुखे संजम पाळण रो उपाय साधां पिण इमहिज कह्यो, रहिणो भारमल जी री आज्ञा माय॥ १७ शिष करणा ते सर्व ही, भारमलजी रै नाम। अखंड आण . तसु पाळवी, ए मर्याद अमाम॥ १८ भारमलजी रजाबंध होयनै, और साधु नै सुन्याव। चेलो सूंपे तो करणो अछै, बीजू करण रो कियो अटकाव॥ १९ भारमलजी पोता रे चेलो करै, ते पिण तिलोकचंद चंद्रभाण। आदि बुधवान साधु कहै, ओ संजम लायक जाण ॥ २० प्रतीत आवै बीजा मुनि भणी, तो करणो शिष सोय। जो प्रतीत आवै नहीं, तो नहि करणो कोय।। २१ कोई अजोग हुवे कीधां पछै, तिलोकचंद चंद्रभाण आद। छोड़णो बुधवंत रा कहण सूं, माहै न राखणी व्याध।। २२ नव पदार्थ ओळखायनें, दिख्या देणी वर नीत। आचार पालां तिम चोखो पालणो, एहवी बांधी परंपरा रीत॥ २३ भारमलजी री इच्छा हुआं, गुरु भाइ चेलादिक नै सूल' । टोळा रो भार सूंपै तदा, ते पिण करणो कबूल ।। २४ ते पिण रीत पंरपरा, सर्व साध-साधवियां नै सार। एकण री आज्ञा में चालणो, एहवी बांधी छै रीत उदार ।। २५ कोई गणमांहि सूं फारा-तोरो करी, नीकळे इक दोय आद। घणी धुरताई करै, बुगलध्यानी दै, त्यांनै न सरधणा साध॥ २६ च्यार तीर्थ में गिणवा नहीं, चतुरविध संघ रा निंदक असार। वांदे पूजै एहवा भणी, ते पिण आज्ञा वार॥ २७ काम पडै चरचा बोल रो, किण नै छोड़णो मेलणो तोला। करणो बुधिवंत नै पूछ नै, इमहिज सरधा रो बोल॥ १. कलह। २. श्रेष्ठ ३. निषेध। ४. व्यवस्थित रूप से। ४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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