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'लिखित सं० १८३२ री जोड़
ढाळ : १
दूहा
१. असल धर्म महावीर नों, निमल माग निकलंक।
जमल ज्ञान अरु चरण युग, कमल जेम निक। २. शरण स्वाम शासण सुजस, धरण दुधर शिव धाम।
वरण अमर-वधु वसुधरा, तरण भवोदधि ताम।। ३. अंग अनंग सुचंग अति, वच वर रुचिर विसाल।
अवलोकी आगम अनघ, मुनि भिक्षु गुणमाल ।। ४. संवत् अठदससय - सतर, समचित कर सुविचार।
निरवद दान दया निमल, वर वारूं व्रत धार ५. विविध सुविध . मर्याद सुध, स्थापन कर स्थिर भाव।
भिक्खू प्रकट्या भरत में, सांप्रत तरणी नाव॥ गणपति गुणाकर शोभता।
मुणिन्द मोरा ! धिन-धिन भिक्खू स्वांम हो ।।धुपदं॥ ६ ऋष भीखण सर्व साधां भणीं। पूछी धर अह्लाद हो।
. सर्व साधु साधवियां तणी, बांधी वर मरजाद हो। ७. ते साधां नैं पूछ नैं, साधां कनां थी कहिवाय।
आगल ते लिखिये । अछै, मर्यादा सुखदाय।। ८. सर्व साधु नै साधवी, भारमल जी री आंण ।
विहार चोमासो करणो तिको, करणो आण प्रमाण ।। ९. दिख्या देणी ते इण विधै, भारमल जी रे नाम।
सर्व साधु साधवियां तणी, मरजादा अभिराम ।।। १०. चेला री नै कपड़ा तणी, साताकारिया क्षेत्रां नी ताहि।
आदि देइ बहु वस्तु नीं, ममत करी मन मांहि। ११. जीव अनंत मूर्छा थकी, चारित्र रत्न गमाय।
नरक निगोद मांहि गया, इम भाख्यो जिनराय।। १२. तिण सूं ममत शिषादिक तणी, मिटावण तणों उपाय। ___चारित्र चोखो पाळण तणों, उपाय कियो सुखदाय॥ १. लिखत देखें-परिशिष्ट १ ३. लयः सींहल नृप कहै चंद नै २. युगल।
लिखतां री जोड़: ढा० १:३