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________________ पेलां रा दोष धार नै भेळा करै ते तो एकंत मृषावादी अन्याइ छै, एहवो कह्यो । तथा पचासा रा तथा गुणसठ रा लिखत में एहवो को -कर्म धको दीधा टोळा सूं तो टोळा रा साध - साधव्यां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलवा रा त्याग छै । टोळा नै असाध सरध नै नवी दिख्या लेवे तो पिण उठी रा साध साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै। उपगरण टोळा मांहे करै ते, परत पाना लिखे, जाचे ते, साथे ले जावरा त्याग छै । तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो - टोळा सूं टळै तो इण सरधारा भाई बाई हुवै जिण खेत्रां में एक राति उपरंत रहिणो नहीं । एहवो गुणसठा रा लिखत में कह्यो । ते मर्यादा उत्तम जीव ह्वै ते लोपे नहीं । अवनीत नै निषेध्या गुणग्राही तो राजी अवनीत अजोग ह्वै ते पोता ऊपर खांचे। ऊंधी प्रगमे। आगे पिण अवनीत अजोगां रा एहवाज लखण कह्या । वीरभांण अवनीत हुओ, तिण पिण अवनीत री जोड़ आप ऊपर खांची । वीरभाजी नीं वारता भीखणजी स्वामी लिखी ते गम विठोड़ा मांहे साधां नै विनां रा भाव सुणाय नै सर्व साधां नै पूछी नै सर्व साधां मरजादा बांधी ते मरजादा पानां मांहे । तिण उपर वीरभाण ही दिष्टंत दीधो-हिवै राज तकरार हुई छै । मुसद्दी पाधरा चोलियां ठीक लागसी । तठा पछै वीरभाणजी नै अणदेजी विहार कीधो । जेतावंता रे गूढ़े गया । पछै अणदेजी वीरभाणजी नै विना री ढाळ फेर सुणाइ। ते ढाळां वीरभाण जी सुण नै अणदाजी नै कह्यो-हिवै तो स्वामीजी नै पूरी परतीत उपजावणी | म्हारी तो आगै साधां में अप्रतीत घणी छै । ते परतीत उपजाइ ते अणदाजी नै कह्यो-म्हे चेला करण रा तो जावजीव पचखांण कीधा, स्वामीजी कर दे तो आगार है। मारी तरफ सूं तो जाव जीव लगै चेला करण रा त्याग छै । बलै परतीत उपजावा नै एक कागद । लिख्यो । तिण में अनेक बोल लिख्या । अणदाजी नै वचाय नै कह्यो-ए लिखत स्वामीजी नै सूंपणो छै। बीजां री तो अप्रतीत अपना स्यूं लिखत कराय - कराय धा छै, अनै हुतो स्वामीजी नै हाथां सूं लिखत कर नै सूंपस्यूं । तिण लिखत प्रमाणे स्वामीजी चलावसी जिण तरै चाल सूं । इत्यादिक अनेक परतीतकारिया वचन कह्या, लिख्या छै । विहार करता गांव रोयट में महा विद १४ रे दिन गया । पना नै गांव सिरियारी आयो । रोटरा भाया नै पनो विनो नरमाइ स्वामीजी आगे घणो करै छै । तिवारै पछै महा सुध ६ अणदाजी आगे कह्यो -पना नै तो स्वामीजी भिष्ट कीधो छै| म्हारे चलो हुतों जाण नै । एक पिछोवड़ी मटुजी आगे एक वरस ताइ अधिकी रही छै, ते साधां रखाइ छै । तिणरो निकालो साच नायो तो म्हारे टोळा मांहि रहिण रा जावजीव त्याग छै । पछै अणदोजी कहै - मोनें फारण रै वासते स्वामीजी सूं मन भांगण रै वास स्वामीजी रा अनेक ओगुण बोल्या तेहनी विगत । तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था २७२
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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