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हिवै अनेक अवगुण अणदाजी आगै वीरभांणजी बोल्या। ते अणदेजी लिखाया
१. पनां नै भिष्ट कीधो म्हारे चेलो वेतौ जांण नै। २. एक पछेवड़ी आ· कनै इधकी रखाइ। ३. धूरतपणो घणो छै। ४. माया कपटाइ घणी। माया आगै क्रोध मान लोभ री ठीक पहै नहीं।
भरत खेत्र में च्यार जीव भारीकर्मा छै। इण भेष में रुघनाथ, वसी, वखत
मल, देवकरण ज्यूं पांचमा औ पिण भारी कर्मा दीसै छै। ६. कर्मा सूं डरता काइ दीसै नहीं। इह लोक रा अर्थी दीसै छै। ७. विना री ढाळ कीधी ते मो ऊपर कीधी छै, उपसम्यो कळहो उदीरियो छै।
राग द्वेष रे वासते कीधी छै। दोय वरस ताइ न कीधी हुवेत तो हूं हिल मिल
जात, इण जोड़ विना कांइ बीजा भाव थोड़ा था। ८. विनां री जोड ते सगळी आप ऊपर खांची। ९. म्हारे दोष लागा था तिण री आलोवणा हांडोती में कीधी पिण पूरी न कीधी।
टोळा मांहे आत्मा अर्थी जोवण नै रह्यो। १०. यां रो हूं चेलो हुवो ते वंदणा कीधी ते म्हारे कर्म घणां तिण सू चेलो हुवो। ११. म्हे वीठोड़ा मांहे लिखत में मतो घाल्यो ते सरमासरमी घाल्यो छै। १२. पनां रा अनेक गुण कीधा पनां ने घणो सरायो। १३. पनां नै दिख्या देने इणहीज खेत्रा में फेरां,पछै लोका नै पूछा-ओ देखो पनो
किण सूं घटतो आचार पाले छै, इत्यादिक अनेक गुण किया। १४. थां नै विगारिया ज्यूं पना नै सूंस कराय नै भिष्ट कीधो छै। १५. अणदाजी नै थां नै म्हारी आसता हुवै म्हारा ओगुण काढ़जो मती अबै थे
पिण टोळा माहे रहता कोइ दीसो नहीं। १६. पाली रै बारणे कांने कह्यो थे पोथी लेनै जाओ हूं अठा सूइ परो जाऊं। १७. म्हारे साधां नै फटावणा नहीं, तरे अणंदेजी कह्यो–थारा फंटाया कुण फंटे छै।
तरै पाछा कह्यो-डोकरो (सुखरामजी) नै अखेराम। १८. मोनै आर्यां वैरागी कहै, पिण साध मोनै सरावै नही। वेरागी कहे नहीं।
आर्यां माहरा गुणग्राम करै, पिण साध म्हारा गुणग्राम करै नहीं। १९. मोनै साध ढीलो जाणे, तिण सूं म्हारा त्याग सरावै नहीं। २०. मोनै कह्यो थो अबै थारे नचिंत टोळो बांधो।
१.बन्दोवस्त करना।
सत्रहवीं हाजरी : २७३