SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्रहवीं हाजरी पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणां। ई- भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परठवतां सावधानपणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर री आज्ञा अखंड आराधणी। श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै आचार श्रद्धा प्रगट कीधी- विरत धर्म, अविरत अधर्म, आज्ञा मांहे धर्म, नै आज्ञा बारै अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। किण ही साघ आर्ध्या में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो, तथा गुरां नै कहणो, पिण औरां नै न कहणो। घणा दिन आड़ा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित धणी रो उ हीज छै। तथा संवत् १८५२ वरस आर्यां रे मर्यादा बांधी, तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो दोष रा धणी ने कहिणो तथा गुरां ने कहणो और किण ही आगे कहणो नहीं। आर्यां जाण ने दोष सेव्यो हुवै ते पानां में लिख्यां विना विगै तरकारी खाणी नहीं। कोइ साधु-साधवियां रा अवगुण काढे तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो-'स्वामी जी नै कहीजो' जिणरा परिणाम टोळा माहे रहिण रा हुवै ते रहिजो। पिण टोळा बारै हुवा पछै साधु-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बलै करली-करली मर्यादा बांधे त्यां में पिण ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै।। तथा चोतीसा रे वरस आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-टोळा री साध आर्थ्यां री निंद्या करै तिण नै घणी अजोग जाणणी। तिण नै एक मास पांचू विगैरा त्याग छै। जित री बार करै जितरा मास पांचू विगै खावा रा त्याग छै। जिण आल् साथे मेल्यां तिण आर्यां भेळी रही अथवा आर्यां माहोमांहि सेषे काळ भेळी रहे अथवा चोमासे भेळी रहे त्यां रा दोष हुवै तो साधा सूं भेळा हुआं कहि देणो न कहै तो उतरो प्राछित उण नै छै। टोळा सूं छूट न्यारो हुआ री बात माने त्यांनै मूर्ख कहीजे। तथा पचासा रा लिखत में कह्यो-कोइ ग्रहस्थ साधु-साधव्यां रो सभाव प्रकृत अथवा दोष कोइ ग्रहस्थ कही बतावे, तिण नै यूं कहिणो-मोने क्यांने कहो, के तो धणी ने कहो, के स्वामी जी नै कहो, ज्यूं यां नै प्राछित देने सुध करै, नहीं केसो तो थे पिण दोषीला गुरां रा सेवणहार छो। जो स्वामी जी नै नही कहिसो तो थां में पिण बांक छै। म्हां नै कह्यां कांइ हुवै। इम कहि नै आप न्यारो हुवै। पिण आप बेदा मांहे क्यांनै परै। सत्रहवीं हाजरी : २७१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy