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रात दिवस
गुर
रो ध्यान ध्यावे, रात दिवस गुर रा गुण गावे । गुर कीधो उपगार बतावे, गुर रा गुण किण विध गावे ॥ गुर मोसुं कियो उपगार, ज्ञानादिक गुण रा दातार । हुं तो हूंतो जीव अज्ञानी, मोने सतगुर कीधो ग्यानी || हुं तो अनाद काळ रो मिथ्याती, हिंस्या धर्म तणो पखपाती। ते माहरी सरधा खोटी छोड़ाय, गुर सम्यक्त दे आंण्यो ठाय ॥ हूं खूतो थो संसार मझार, जब हूं सेवतो पाप अठार । मोने दिया दे गुर कियो साध, म्हारी भव भव मेटी असमाध ॥ हूं डूबो इण संसार रे मांहि, गुर बारे काढ्यो बांह समांहि । साध श्रावक धर्म पमायो, त्यां सूं ऊरण किणविध थायो || हूं अनंत संसारी जीव थो भारी, मोने गुर कियो परत संसारी ।
पावे ।
लेषवे सिर धणीनाथ ॥
दुर्लभ बोधी जीवो करलो, गुर मोने सुळभ बोधी कियो सरळो ॥ हूं तो अचरम मिथ्यात सहीत, संसार रा छेहड़ा रहीत। गुर चरम करे सिर चाढ्यो, म्हांरा संसार से छेड़ो काढ्यो || १० मोने गुर कियो मुगति नजीक, इंद्रां नो पिण कियो पुजनीक । म्हारो जीतब जन्म सुधारयो, मोने संसार थी पार उतारयो ॥ ११ सिख सुवनीत हलुकर्मी होवे, ते गुर रा उपगार सांहों जोवे । जिण आगम सीषामण धारी, हिवे कुणकुण करे विचारी ॥ १२ कोइ पटो राजा रो खावे,. कोइ रोजगार नित ते पिण विनो करे जोड़ी हाथ, बले १३ तिण ने करड़ी 'मूम धणी मेले, ते पिण धणी रो वचन न ठेले । मर जावे तिण रा मूढा आगे, धणी मेल पाछो नहीं भागे ॥ १४ तिण धणी रो पिण काचो आधार, थोड़ा में देवे पटो उतार । बले काढ़ दे देस रे बार, कदा जीवां पिण न्हाषे मार || १५ तिण धणी रो पिण वचन न लोपे, मरणे सांहमो मंडे पग रोपे । जा आउंधणी रे काम, तो हूं नहीं होवूं लूणहराम || १६ रिजक रोटी पटा रे काजे, मर जाए पिण पाछो नहीं भाजे । तो हूं मुगत जावा रे काज, पंडित मरण करतो नाणुं लाज ॥ १७ गुर शिष ने मुगत गामी कीधो, मोष रो पटो अवचल दीधो ॥ दल दियो दूर गमाय, ग्यांन दरसण चारित तप प्रमाय ॥
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१. स्थिति ।
नवमीं हाजरी : २३३